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________________ २१८ कविवर बुचराज एवं उनके समकालीन कवि बालम तुव महवाल ह्उ, तो बिनु एह प्रकछ । के जरि वरि माटी भली, कैर तुमारं स ।। २८७॥ बालम तुम विनु रूवरी, सोता कि जगह जसु वालम विनु क्रिम मामिति किम भामिनि विनुगेछु । दान विहीनौ जैम घर सील बिहीनों देहु ।।२८६।। चौपई लहिमलि भारी होइ । धीरी घरं या कोइ ||२६|| रानी भर्न जोरि परि मो बचनु एकु प्रभु देह, दियवर भएहि वेद की श्रादि, ताते एहु बचनु प्रतिपालि, फुरिए हाथ, हो तपु करमि तुमारे साथ । भोजनु करहि हमारे गेह ||२०|| वलि विषानु भोजन वितु वादि । तुम हम तपु लीवौ कालि || २६१ ॥ रानी बनु मोहि प्रभु रह्यो, मानहु मोह निसार गह्यो । जनु पडि ढलना मेले सीस, भूली सर्व पाछिलो रीस ||२२|| रानी चरितु स्यणि जो रयो, भाई मो सुपिनु हो भयो । भरम मुलानो ठगि सो लयो, मांग्यों बचतु नारि कहूं दयी ।। २९३ ॥ रूपरि रवण कथा पिलुरोह में कचनु कर्म की रेह । मानी राइ नारि की वात, भामिनि रोम हुलासी गात || २६४ | रानी द्वारा जहर के लड्डू बनाना एवं राजा को खिलाना तब राणी प्रपनं घर गई, बोली सबी रसोइ ई लडू किये बहुत बिसु घालि, कछूकु तं वन दीनो पालि ||२५|| हीन बात किस बरामि और लोपि सोधि करि दोनो ठौर सहरु चन्द्रमती सु पहारिण, दोक जैव न बैठे प्राण || २६६ ॥ भोजन करत उठी तनु कापि । P लाडू भाति परोसे चापि ताकी उपमा दी कौन, जुर जाड़े जहू तृम्यो अंगु नसणी टूटि जीभ लहराण, चन्द्रमती के विकसे प्राण || २६८ : | भूमि चालु सौ लाग्यो हौन ||२७|| भयो नयन काशनि को मंगु दुवै करि राजा, अमिय महा दे की ज्यौ डस्यो । जौ राजा को जीवन होइ, तो प्रभु मारे मोहि विगो ||२६||
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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