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________________ यशोधर चौपई २१७ वरण कूकुरु को नौ सुसि टारि, पेषि रहसू मान्यी परिवार । करत कुभाउ या राजा रथी, ले करि दीपु कुवामहु पस्यो ।।२७४।। जाणि बुझि कोज जिय घात, कवण निधार पर कहि जात । गो गांव मे गेह. : मेरी अपनी अलि लेय ।।२७५।। हपौ प्रचेतु रहसु मन माणि, अनु कुसु संची महा दुषाणि । चन्द्रमी बोली तहि थाणि, थोरै भलो हमारी माणि ।।२७६।। तू कुलदेवी कुल की वारि, रण रावर तु लेह उवारि । बहुत भगति करि रह्सी देह, फुणि नंदणस्यो पाली गेह ।।२७७।। जसहर जस में कुमर हकारि, कलस ढारि आसन सारी। दीनी राजु पटु दलु देसु, पापुनु वरण तप चल्यो नरेसु ॥२७८|| तहि ठा मारदत्त सुवि राइ, कम तली गति कहण न जाई । अमिय महादेवी ससि वयणि, सरस कंजदल दीरह रायणि ।।२७६।। भूलोही न कुषि जकं हेत, जसहरु राउ सुन्यौ तपु लेतु । अकुलानी विह लंघल गई, जिम मच बेलि पवन की हुई ॥२८॥ जो ण होइ थिरु एको घरी, दिनु ग्रंथव तप र कर मरी । सुनी न पेपी जो अनववी, कंतहि सैन फेम तपु सदी ।।२८१।। यह फुणि मानौ कछु विचारु, जिहि ते दीक्षा लेइ भतारु । आणमि राजा भया उदास, देषी रमणि कूवरे पास ।।२८२।। रामी अमृता को प्रार्थना पेषत मानु राइ को मल्यो, ताते कंतु लन तपु चल्यो । जो राजा फिरि माई राजु, मेरी सकल दिनासै काजू ॥२८३३॥ ऐसौ जानि डिभ मनभरी, चंचल प्राइ राह पग गरी । नयन कमल भरि छाड्यौ नीरु, बिरह वाण घन घुम्यो सरीर ।।२८४।। भरणं नाह हो तेरी दासि, साई मोदि तजहि का पासि । मो तजि किम लप लेह भत्तार, तो चिनु प्राण जाहि सुपियार ॥२०५।। दोहरा वालम जोवनु कुसुम धनु, केम चल दबलाइ । सरस बचन विनु जसह रहि, ता विनु केम वुझाइ ॥२६॥
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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