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________________ यशोधर चौपई २१६ पापिरिण भई मापने भेस, सिर मुकराइ दिये तिनि केस । परि जरक सी दीनौ दंत, णिधिण यो मापनी कंतु ।।३००॥ जसवं नंदनु भायौ घाइ, पितहि पषि रहो मुह वाइ। विषस लोग समुझावहि तासु, जाणि राइ जग मौ को कासु ।।३०१॥ मादि मनादि भए अरु गए, जाने कवनु कितिक निरमए । पाप पुण्य है चलहि सघात, करण काहू दीस जात ।।३०२।। सुपुरिसु किम रोवे मुह घाइ, लघुता होइ दुवन विहसा । साग्यो तोहि घरणि घरु बंधु, जस में राज धुरा धरि कंधु ॥३०३।। प्रमिय महादै मौको धाह, मोकाको करि वाले नाह । सो फुरिण प्रमु समुझाइ राषि, जस में राइ स कोयलु भाषि ।।३०४।। माता जाणि न धिरु संसार, परजि रहायो सव परिवार । जराहरू राउ चन्द्रमति पाए. अश्मी करि ले गए मसान ॥३८५11 श्लोक मर्थी गृहानिवत्तते, मसानेषु च बांधवः । सरीराग्निसंजुक्त' च पुन-पापं समं सजेत् ।।३०६।। चौपई किरिया करि नैन्हाह सरीर, कुसुल दियो चूर भरि नीस 1 कीनी सयल मरे की रीति, भासो कथा गई जिम वोति ।।३०७।। वस्तुबंधु देस अयवरु प्रभयरह रणाम पाहासई गुण गहिरु मारिपत्त पर । सुनि भवंतरि कामाह विचित्र पाव पुन फल निमुनि । यंतर जानंतहू असहर रिणवद कुरु भयो प्रचेउ । संसारं हि हिडियउ पाहासमि भष भेज ॥३०॥ चौपई पभणइ कवि परण विधि परमेस मारग सुतण थेघ उपदेस । णिसुबहु भख सुदि करि कारण, जसहर राजा तना कहानु ॥३०६।। जस में राज उज्जैनी कर, उपमा आपु इन्द्र की धरै। कुसुमावलि कसम सर बेलि, ता समान मान सुष केलि ।।३१०॥
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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