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कविवर बुचराज एवं उनके समकालीन कवि
तिनको नाम न लीजे मोर दान पुण्य को परे कठोर ! ते सबहीन दूरि परिहरी तिन प्रपतनु कोतातिन करी ॥६॥ करत निहोरो परे उदास । जोवह दोजह जान ||१०||
भलो ना कछु निपज तिन पास तिनके बचन कौ जहि का श्रं
नवन्ति सफला वृक्षाः नवन्ति सजनाः जनाः । सुक्ककाष्टं च मूर्ख च न रणवंति भजंतिजः ||११||
जिनके वयतु न निकसे पोषा, निसि दिनु करहि दया पर शेचा । जे पर को वितर्वाह उपगारु, निम्मंलु सुजसु भ्रम्यो संसार ||१२||
श्लोक
ते कलिम पंचानन सीहा, तिन श्रुति करनि केम इक जीह । तिन सबहिनु सौ विनो पयासि, मो पर दया करहु गुण रासि ||१३|
बोहा
जे परभीर समुद्धरण, पर घर करण समत्य |
ते विहि पुरिसा अमरु करि, हरियो जोरि विहृत्य || १४ ||
पडु महीमति उत्तम बंधु, पदमावती वंस धवल जस
माश्रयदाता का परिचय -
निय कुल मान सरोवर हंसु । रासि, तागुस सयल सर्क को भासि ।।१५।।
भारग सुतनु येघु गुनगेह, जिनवर पय श्रंबुरुह दुरेहु | फीनें बहुत संतोष विहान, पिणिमन्त्र विच सौदान ॥ १६ ॥ निसि दिनु करें गुणी को मानु, धम्मु छाडि चित धन भानु । मग केलई निवसे सोइ, जहि श्रावग निवर्स बहु लोइ ।।१७।। येघु सतँ कवि गारवदासु, निसुनि चयनुचित भयो हुलासु । है कर जोरि भर्ती गुरण गेहू, सफलु जन्म मेरी करि लेहू ॥ १८ ॥ सलिल कथा जसहर की मासि, जिम गुरु पास सुनी तुम रासि । जे बहू आदि कंविसुर भए, प्ररथ कढोर वरित रचे नए ।।१६।। तासु छाह ले मौसरे भासि, कवितु चोपही वंष पयासि । गार भने निसुनि कुल सूर, परिधान विवस प्रास रसपूर ||२०||
कवि द्वारा अपनी लघुता प्रकट करना---
पढयौन में व्याकरण पुराण, छंद भाइ प्रक्षर को ज्ञाता । जो दुधि विनु कछु कीजे जोरि, तो बुधजन इसि लावहि पोरि ||२१||