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कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि
यशोधर चरित की कथा को समस्त जैन समाज में पर्याप्त लोकप्रियता प्राप्त है । यही कारण है कि इस कथा पर भ्राधारित चरित्र, चरित, रास एवं चौपई प्रादि संज्ञक काव्य कितने ही जैन कवियों ने निबद्ध किये हैं तथा हिन्दी एवं राजस्थानी भाषा में ही नहीं किन्तु प्राकृत, अपभ्रंश एवं संस्कृत में भी यशोधर के जीवन पर कितने ही काव्य मिलते हैं ।
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यशोधर के जीवन से सम्बन्धित स्वतन्त्र रचना का उल्लेख सर्वप्रथम प्राचार्य उद्योतन सूरि (७७९ ई०) ने अपनी कुवलय माला कहा में प्रभंजन कवि के किसी यशोधर चरित का उल्लेख किया है। लेकिन उक्त कृति भभी तक अनुपलब्ध है । इसके पश्चात् महाकवि हरिषेण ने अपने बृहत्कथाकोष (६३२ ई०) में यशोधर के जीवन से सम्बन्धित एक स्वतन्त्र आख्यान लिखा है इसलिए अभी तक उपलब्ध रचनाथों में हम इसे यशोधर के जीवन पर आधारित प्रथम भाख्यान मान सकते हैं । लेकिन १० वीं ११ वीं शताब्दि के साथ ही यशोधर के प्रस्थान ने जैन समाज में बहुत ही लोकप्रियता प्राप्त की और एक के पश्चात् दूसरे कवि ने इस पर अपनी लेखनी चलाकर उसे और भी लोकप्रिय बनाने में पूर्ण योग दिया।
राजस्थान के जन भण्डारों में यशोषर के जीवन पर आधारित निबद्ध कितने ही काव्य उपलब्ध होते हैं। इन काव्यों के नाम निम्न प्रकार हैं
अपभ्रंश
महाकवि पुष्पदन्त
रहनु
संस्कृत
१. जसहरऋरिज
३. यशस्तिलक चम्पू ४. यशोषर चरित्र
यशोधर चरित्र
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१०.
११.
१२.
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यशोधर कथा
शोर चरित्र
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अ० सोमदेव सूरि
वादिराज
भट्टारक सकलकीर्ति
आचार्य सोमकीति
भट्टारक विजयी वि
बासवसेन
पद्मनाभ कायस्थ
पद्मराज
पूर्णदेव
ज्ञानकीति
१० वीं शताब्दि
१५ वीं शताब्धि
संवत् १०१६ ११ वीं शताब्दि
१५. वीं शताब्दि
सवत् १५३६ १५ वीं शताब्दि
सं० १६५६