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गारवदास
गारवदास विक्रमीय १६ वीं शताब्दि के चतुर्थ पाद के कवि थे उनके सम्बन्ध में सर्वप्रथम मिश्रबन्धु विनोद में एक उल्लेख मिलता है जिसमें एक पंक्ति में कवि का नाम, ग्रन्थ नाम, रचना काल एवं रचना स्थान का नाम दिया हुआ है । लेकिन उसमें गारवदास के स्थान पर गौरवदास तथा रचना संवत् १५८१ के स्थान पर संवत् १५८० दिया हुआ है। मिश्रबन्धु के परिचय के पश्चात् भी हिन्दी विद्वानों के लिए गारवदास अज्ञात एवं उपेक्षित से रहे । सन् १९४८-४९ में जब मैंने राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की ग्रन्थ-सूची बनाने का कार्य प्रारम्भ किया तो जयपुर के ही दि० जैन बड़ा मन्दिर तेरह पंथियान में इसकी एक पाण्डुलिपि प्राप्त हुई जिसका उल्लेख ग्रन्थ-सूची के चतुर्थ भाग में पृष्ठ संख्या १६१ २३१३ संख्या पर किया गया। लेकिन उस समय भी कवि के महत्व को प्रकाश में नहीं लाया जा सका और इसके पश्चात् भी कवि एवं उनका काव्य विद्वानों से मोझल ही बने रहे ।
श्री महावीर ग्रन्थ अकादमी द्वारा प्रकाश्य दूसरे पुष्प के संवत् १५६० से १६०० तक होने वाले कवियों के सम्बन्ध में जब निर्णय लेने से पूर्व पारवदास एवं उनकी रचना यशोधर पति को देखा गया तो हिन्दी की महत्वपूर्ण कृति होने के कारण कविवर वृचराज के साथ गारवदास को भी सम्मिलित किया गया ।
गारवदास हिन्दी कवि थे लेकिन वे प्राकृत एवं संस्कृत के भी यच्छे विद्वान् थे । यद्यपि अभी तक उनकी एक ही काव्य कृति यमोवर चरित्र उपलब्ध हो सकी है लेकिन बही एक कृति उनकी विद्वता की परख के लिए पर्याप्त है। वैसे कवि की ओर भी रचनायें हो सकती हैं लेकिन जब तक उत्तर प्रदेश के प्रमुख भण्डारों की खोज पूर्ण न हो जाये तब तक इस सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा जा सकता ।
कवि परिचय
कविवर गारवदास उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे। उनका ग्राम या फफोतूपुर