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कविवर बुचराज एवं उनके समकालीन कवि
सोम
लोमु न कीजई जीवरा, तिसु लोभहि हो लोभहि लाग्यो पापु धनौ । तिनु पापहि हो पापहि जीया दुखु सहेई । दुखु सम्हा जीउयरा लोभ काहन लोभ कहुडीउ तरफरई । ईहु लोभ कारम जीऊ पतिगा, देखत इंदियजा परई । संकलप विकलप भोऊ जियडा, लोमु दंछ चित परई। इम भनई व मनि निरानि अवियल, सोगिन मत कोई करै ।।४।।
॥ इति क्रोध गीत समाप्त ।।
वे सभी चारों पद शास्त्र भण्डार दि. जैन बड़ा मन्दिर तेरहपंथियान अयपुर के गुटके में संग्रहीत हैं।
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