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६. प्रनूप संस्कृत लाइब्र ेरी के लाग राजस्थानी सेक्सम नं० २१७ - अन्त में संस्कृत
श्लोक भी दिये हुए हैं
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नं० ७७ पत्र सं० ६८ - १०२ लिपिकाल संवत् १७४६ ।
मूल्यांकन
पञ्च सहेली गीत राजस्थानी भाषा को एक महत्वपूर्ण कृति है । इसमें श्रृंगार रस का बहुत ही सूक्ष्म तथा मार्मिक वर्णन हुआ है। वियोग श्रृंगार में विरहिणी नायिकाओं के अनुभावों का चित्रण उन्हीं के शब्दों में इतना संबेद्य और अनुभूतिपरक है कि कोई भी सहृदय विरह की इस दंशकारी वेदना से व्याकुल हुए बिना नहीं रहता। कवि ने उसमें वियोग तथा संयोग दोनों का ही चित्रण कर के साहित्य में एक नयी परम्परा को जन्म दिया है। उन्हीं पांचों स्त्रियों की संयोग में मनोभावों की दशा एकदम बदल जाती है। एक सम्बोलिन की मनोदशा वर्णन में तो कवि ने सब सीमाओं को लांघ दिया है। वास्तव में विरह में भर मिलन में यौवना स्त्री की क्या दशा रहती है कवि ने इसका बहुत ही सूक्ष्म हृदयग्राही वर्षान करके पाठकों की पाश्चयं चकित कर दिया है । भाषा एवं शैला दोनों दृष्टियों से भी पञ्च सहेली गीत एक उत्कृष्ट रचना है। राजस्थानी भाषा साहित्य में इस लघु काव्य को एक महत्त्वपूर्ण स्थान मिलना चाहिये
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२. बावनी
छीस कवि की यह दूसरी बड़ी रचना है जिसमें कवि ने कितने ही विषयों को छुआ है । प्रो० कृष्णनारायण प्रसाद 'मागध' के शब्दों मे बावनी में वरित नीति और उपदेश के विषय हैं तो प्राचीन पर प्रस्तुतीकरण की मौलिकता, प्रतिपादन की विशदता एवं दृष्टान्त चयन की सूक्ष्मता सर्वत्र विद्यमान है । कवि संस्कृत के सुभाषितों एवं नीतियों का ऋणी है । पर उनके अनुवादन अनुधावन मात्र नहीं है । 2 प्रस्तुत कृति भाषा एवं भाव दोनों के परिपाक का उत्तम उदाहरण है । यद्यपि नीत्ति और उपदेशात्मक विषयों का वर्णन बावनी का मुख्य विषय है
फिर भी कवि कभी भी काव्य से दूर नहीं हुआ। उसने प्रपने विषय को नये ढंग एवं नये भावों के साथ अभिव्यक्त किया है
१. सूर पूर्व ब्रजभाषा और उसका साहित्य - पृ० ३०७ १ २. मरुभारती वर्ष १५ अंक २० ६
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