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कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि
हरु धनवंत भालसी, ताहि उद्यमी पम्प । क्रोधवंत अति चपल तऊ थिरता जय जम्पई । पत्त कुपत्तन लेखइ, कहर तसु इच्छाचारी । sts बोलण असमध्य ताहि गुरु वत्तन भारी । श्रीवन्त लच्छ अवगुण सहित माहि लोग करि गुण ब छील है संसार महि संपत्ति को सहू को नंबइ ।।५२ ||
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चरासी मगला सह जु पनरहू संवनपुर । सुकुल पब्ष अष्टमी मास कालिंग गुरुवासर । हृदय उपनी बुद्धि नाम श्री गुरु को लीन्हो | सारद तराइ पसाइ, कवित संपूरण कीन्हो | नाल्डिंग बंस सिनाघू सुतन, अगरवाल कुल प्रगट रवि । बावन्नी वसुधा विस्तरी, कवि कंकरण छोहल्ल कवि ||५३ ||
इलि छील कृत बावनी संपूर्ण समाप्त | संवत १७१६ लिखितं पाडे वीरू लिस्यापितं व्यास हरिराम महला मध्ये । राज श्री स्योसिंघ जी राज्ये संवत १७१६ का वर्षे मिती वैसाख सुदी ५ शनिसरवार || शुभं भवतु ॥
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१. शास्त्र भण्डार वि० जैन मन्दिर लूणकरसा जो पांडे जयपुर गुटका संख्या १४० ।