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________________ १५२ कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि हरु धनवंत भालसी, ताहि उद्यमी पम्प । क्रोधवंत अति चपल तऊ थिरता जय जम्पई । पत्त कुपत्तन लेखइ, कहर तसु इच्छाचारी । sts बोलण असमध्य ताहि गुरु वत्तन भारी । श्रीवन्त लच्छ अवगुण सहित माहि लोग करि गुण ब छील है संसार महि संपत्ति को सहू को नंबइ ।।५२ || " चरासी मगला सह जु पनरहू संवनपुर । सुकुल पब्ष अष्टमी मास कालिंग गुरुवासर । हृदय उपनी बुद्धि नाम श्री गुरु को लीन्हो | सारद तराइ पसाइ, कवित संपूरण कीन्हो | नाल्डिंग बंस सिनाघू सुतन, अगरवाल कुल प्रगट रवि । बावन्नी वसुधा विस्तरी, कवि कंकरण छोहल्ल कवि ||५३ || इलि छील कृत बावनी संपूर्ण समाप्त | संवत १७१६ लिखितं पाडे वीरू लिस्यापितं व्यास हरिराम महला मध्ये । राज श्री स्योसिंघ जी राज्ये संवत १७१६ का वर्षे मिती वैसाख सुदी ५ शनिसरवार || शुभं भवतु ॥ 000 १. शास्त्र भण्डार वि० जैन मन्दिर लूणकरसा जो पांडे जयपुर गुटका संख्या १४० ।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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