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________________ 5: : १. ब्रेस २. ३ विलसि बावनी तिय तरुण are] विवा पराज, सज्जन सरिस वियोग दुष । इत्तनं ठाम श्रीहल्ल मह, कियो विवेक न विधि पुरुष ||४७|| भोको सज्जन प्रीति, भवर पुनि छाया बद्दल | वासी सरिष सनेह, अवर वरषइ जु मोस जल । सरवरि छीलरि पानि, सगिनि तृरा केरज तपन 1 विह सरिस मड वाउ, पिषि गब्बहु जिनि प्रप्पन | का पुरुष बोल वेस्याविसन, एता अंत न निरवहै । बिस्वास करत ते हीण मति, सांधि वयण बीद्दल कहै ||४८ ॥ ससि उगवनि जो कंबल मज्झि मकरंद दियो जिहि । विकसित चित उल्हास, बास केतकी लई तिहि कुंभस्थल गय मय प्रवाह अस्यो कदलो वन सरस सुगन्धजु पुहुप विसि पुज्जइय रली मन । खीहल्ल विवि चारा, जिद्दि रितु मानी अप्पन स । सो भ्रमर प्रबहि विधि पुरुष दसि अफ्क करीरह्रि दिन गर्म ४९॥ : बल दुज्जन मुष विवर, मज्झि निवसहि जे कुंषचन । तेई सरप समान होइ लागहि घटि सज्जन । सोबइ सकल सरीर, लरि भावइ जोवंत | मूली बंद गारूडो, गिर्न नहि तंत न मंतई । उपचार एक बहल कहै, सुणिय विवध्य उत्तमा ! विप दोष निवारण कारणं, निज औषध साधउ बिमा ॥५०॥ समय जु सीत वितीत, भृया वस्तर बहु पाए । बीण बुधा घटि गई, वृथा पंचामृत षाए । वृथा सुरति संभोग, रयण के अंत जु कीजइ । वृषा सलिल सीतल सु सासु, बिण तृषा जु पीजइ । चातक कपोत जलचर मुए, वृथा मेघ बहु जल दए । सो दान वृया छोहल कहै, जो दीजद भवसर गए ।३५१११ जम जे सापन १४१ 1
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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