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sfoवर चराज एवं उनके समकालीन कवि
ही उनकी सेवा करती रहे । यह कह कर वह रोने लगी और उसकी खों से अश्रुधारा बह चली ।
नेमि ने राजुल की बात सुनी। उन्होंने कहा कि वे तो वैरागी हो गये हैं संयम धारण कर लिया है इसलिए घब राजुल की सेवा कैसे स्वीकार कर सकते हैं । इसके अतिरिक्त उन्होंने राजुल से वापित भपने परिजनों में लौटने की सलाह दी । जिससे वह राज्य सुख मीरा जानने वाली थी. उसके फिर अनुनय विनय किया। रोगी और नेमि से उसे भी व्रत देने की प्रार्थना की। अन्त में नेमिनाथ को उसकी प्रार्थना को स्वीकार करना पडा और उसे धार्मिका की दीक्षा दे दी। इसके साथ ही नेमिनाथ ने आवश्यक व्रतों को पालने का उपदेश दिया ।
लेकिन
इस प्रकार मीश्वर का उरगानो' एक शान्त रस प्रधान काव्य है जिसमें विरह मिलन की अद्भुत संरचना है। नेमि द्वारा तोरणद्वार पर भ्राकर वैराग्य धारण कर लेने की इतिहास में अकेली घटना है। फिर उनसे गजुल का घर वापिस लोटने के लिए अनुनय विनय पति के विरह में होने वाले कष्टों का वर्णन मौर वह भी आमने सामने जहां एक वैरागी हो और एक नयी नवेली बनी हुई उसी की दुल्हिन | भगवान शिव को तो पार्वती की तपस्या के सामने झुकना पड़ा लेकिन नेमिनाथ के वैराग्य को राजुल नहीं गा सकी। उसने भी नेमि से अधिक से अधिक माग्रह किया, रोई विलान किया, लेकिन वे कब अपने वैराग्य से वापिस लौटने वाले थे। अन्त में राजुल का हो संयम धारण करना पड़ा ।
भषा
प्रस्तुत कृति व्रत्र भाषा की कृति हैं जिस पर राजस्थानी का प्रभाव है। अखारे (६), कोरि (४) प्रीतरे (७), कन्हरु (६), जीवहि (११), मोरि (१३) तोरि (१३), होइ है (१६) तिहारे (२२) प्रावि शब्दों का पर्याप्त प्रयोग हुआ है। ड और ट के स्थान पर र का प्रयोग किया गया है ।
रचना काल
प्रस्तुत कृति संवत् १५७१ की रचना है। रचना समाप्ति के किन भाव बुदी पंचमी सोमवार था। रेवती नक्षत्र एवं लगन में चन्द्रमा था । '
१. संवतु पग्रह वो गनी गुन
भादो व तिथि पंचमी पाठ लगुन भलो सुभ उपजी मति,
गुनहतरि ता उपरिन । सोम नवि रेवती साथ | चन्द्र अन्म वलु पाइयो ।