________________
नेमीश्वर को उरगानो
१६७
नेमोरयर का परिचय
तब बसुदेव कहे सप्तभाव, यहु नेमीसुरु त्रिभुवन राउ । समद विच घर औतरे, छत्रु देहु यौं ज्यौं नर नाहा । वादि परन भारते कराड, नेमि कुवर जिन बंदि हो ।।७।।
तव हरि भने सुनै वसदेउ, नेमि तिनो तुम जानो भेउ । सो कारन हम सो कही, विद्या बलु या पासन माहि । जोत्यो कहै जुरासिंधु ताहि. में वारो करि जानियो। तब हि कहै बलिभद्र कुमार, मो पहि सुनौ यांको व्योहार । गुपित रूप गुन मागरी, नेमि कुवरु यहु गश्वो वीरु ।
या समान नहि साहस धीरु, नेमि कुवर जिन बंदि हो ।।। जूत झा अनार के पास र राजत माह का प्रस्ताव
सुनत प्रचं मी हरि मन भयो, पटतरी नेमी स्वर कोलियो । सब वलु आउत देखियो, बिलख वदन माहरी मन जाम । कर ही उपाउ त्रिसो ताम, दूतु तब हि तिन पाठपो । उग्रसेनि घिया राजकुमारि, राजुल देवी रूप कि पारि । देहुँ गइ कन्हरु भनौ, नेमि कुवर या व्याहै भाई ।
आदौ सयल साथ समुहाइ, नेमि कवर जिन वंदि हो ॥३॥ उग्रसेनि तब हरखिय गात, परियन बोलि कही तिनि. वात । सौज करो वहु अति धनि, जादौं भावहि स्यौ परिवार । कला हमारी रहे अपार, मनु नाराइन रंजियो । बधिक बूलाइ राइ यो कह्यो, वन मा जीउन एक रहै । सौ निग्रह तुम सौ करो, हिरन रोझ वह जीव भपार। आनहु षेरि न लावो वार, नेमि कुवर जिन बंदि हो ॥१०।।
वारात
छपन कोरि जो जादौ असमान, पहथे उग्रसेन के धान । पंच मवद वाजेहि धन, छायहु सुर गगन पाकासु । सुरपति सेसु डरौहि काविलास, तीनि भुवन मन फपियों। नेमि कुवर जोवहिं बहु पास, जीव देखि चितु कियो उदास । नेमि कुवर जिन वेदि हो ॥१२॥