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चतुरुमल
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पह लघु गीत है जो पद रूप में है। जिसमें मानव को भगवान की पूजा मादि करके निर्माण मार्ग पर बढ़ते जाने को कहा गया है। पद को अन्तिम पंक्ति में "संसारह श्रावग कुलि सारु भमई चघुश्रावगु श्रीमार" कह कर अपना परिचय दिया है ।
दूसरा गोत-इस गीत का शीर्षक है 'गाडी के गवार की'। यह भी प्राध्यात्मिक पद है जिसमें दसधर्म को जीवन में उतारने तथा मातों व्यसनों को स्यागने की प्रेरणा दी गई है । पद का भन्तिम चरण इस प्रकार है
___ "श्रावग गुणड्ड विचार, चतुरु यो गावहिरो"
तीसरा गीत-इस गीत का शौर्षक है "पाईति बाबा वारी के जईयो" यह भी उपदेशात्मक पद है जिसमें थावक को मानव जीवन को सफल बनाने का अनुरोध किया गया है। कवि ने पद के अन्त में "भनई चतुरु श्रीमार" से अपने नाम का उल्लेख किया है ।
४. कोष गीत-यह भी समु गीत है जिसमें कंप, जान, शायः पीरले की निन्दा करके उन्हें छोड़ने का उपदेश दिया गया है। इसमें चार प्रन्तरे हैं। मान कषाय का पद निम्न प्रकार है
मानु न कीज जोईपरा, तिसु मानहि हो मानहि जीयग दुख सहे। अप्पु सराहे हो भलो, पुणि परु को हो पर की गित करई । पर कई निशा नित्त प्रानी, इसोइ मन गरवं खगै । हउ रूप घतृरु सुजानु सुदरू. ईसोप भनी मद भरे । महमेव करि करि कर्म बंधी, लाख चौरासी महि फिरै।
ईम जानि जियरा मानु परिहरि, मानु चहु दुखह करी ।।२।।
५. नेमस्पर का उरगानो प्रस्तुत कृति कवि की सबसे बड़ी कृति है। अब तक काव्य के जितने भी नाम पाये हैं उनमे 'उरगानी संज्ञक रचना प्रथम बार प्राप्त हुई है। 'उरगानों' का प्रथं स्वयं फदि ने 'गुन विस्त' मात गुणों को विस्तार से कहने वाले काष्य को उरगानो कहा है। इसमें नेमिनाथ के जीवन की विवाह के लिए तोरण द्वार को छोड़कर वैराग्य धारण करने की घटना का वर्णन किया गया है । उरगानी की कथा का सक्षिप्त सार निम्न प्रकार है
मंगलाचरण के पश्चात् उरमानो नारायण श्रीकृष्ण के पराक्रम की प्रशंसा से प्रारम्भ होला है जिसमें कहा गया है कि द्वारिका में ५६ कोटि यादव निवास करते थे जो सब प्रकार से सुखी एवं सम्पन्न थे । नारायण श्रीकृष्ण ने जरासंध पर