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कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि
प्रारम्भ की थी। अभी तक हमें कवि के चार गीत उपलब्ध हो सके हैं प्रोर चारों ही एक गुटके में संग्रहीत हैं।
कवि की सबसे बड़ी रचना "नेमीश्वर को उरगनो" है। इस को कवि ने ग्वालियर में संवत् १५७१ में भादवा बुद्दी पंचमी सोमवार को समाप्त की थी। उस दिन रेवती नक्षत्र था। इसमें ४५ पद्य है। तथा नेमिनाथ एवं राजुल के विवाह की घटना का प्रमुखतः वर्णन है।
उक्त रचनामों के अतिरिक्त कवि ने और कौन कौन सी कृतियां निबद्ध की इसका अभी पता नहीं चल पाया है लेकिन यदि मध्य प्रदेश के शास्त्र भण्हारों में लोज की जाये तो संभवतः कवि की और भी रचनायें उपलब्ध हो सकती हैं ।
कवि ने ग्वालियर के तोमर शासक महाराजा मानसिंह के शासन का प्रयश्म उल्लेख किया है तथा ग्वालियर को स्वर्ण लंका जैसा बतलाया है 1 महाराजा मानसिंह को उस समय चारों छोर कीति फैली हुई थी तथा अपनी मुजाओं के बल से वह जग विख्यात हो चुका था । ग्वालियर में उस समय जैन धर्म का प्रभाव चारों मोर व्याप्त था। थावकगण अपने षट्कर्मों का पालन करते थे तथा उनमें धर्म के प्रति अपार श्रद्धा थी।
कवि के कुछ समय पूर्व ही अपभ्रंश के महाकवि रइबू हो चुके थे जिन्होंने अपभ्रश में कितने ही विशालकाय काश्यों की रचना की थी । रइधू ने जिस प्रकार ग्वालियर का, यहां के श्रावकों का, तोमर वंशी राजामों का बणन किया है लगता है वालियर दुर्ग का वही ठाट बाट कवि षतुरुमल के समय में भी व्याप्त था। क्षेकिन चतुरु ने न रइयू का नामोल्लेख किया मोर न नगर के साहित्यिक वातावरण का ही परिचय दिया।
कवि के जिन रचनामों की अब तक उपलब्धि हुई है उनका परिचय निम्न प्रकार है१. गीत-(ना जानो हो को को परे ढीलरीया कत जाई)
१. चत्रु श्रीमाल वासुदेव बगी। गति गारि की आइ फोपो गढ मर संवत्
१५६६ को । गुटका - शास्त्र भण्डार वि० जम मन्दिर बड़ा तेरहपंथियों का,
जयपुर । वेष्टन संख्या २४८७ । २. संवतु पन्द्रहस वो गर्न, गुन गुनुहतरि ता उपरि भवे ।
भाधौ पति तिथि पंचमी धार, सोम न पित्त रेक्ती मास ।