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कवियर बुबराज एवं उनके समकालीन कवि
afte मंदिर धन्न दिन, घनस पावस एह धन्न वल्लभ परि आईया, धनस चुद्रा मेह ||६५ ||
निल दिन जाइ आनंद म, विलसह बहु विध भोग | छोहल्ल पंचइ कामिनी आई पीय संजोग ||६६ ॥ मोठे मन के भावते, कीया सरस वखाण | अण जाण्या मूरिख हसर, रोझइ चतुरसुजाण ॥ ६७ ॥
संवत् पर पचह्नुत्तरह, निम फागुण मास । पंच सहेली वरणदी, कवि छीद्दल्ल परमास ।।६८६
॥ इति पंच सहेली गीत सम्पूर्ण ॥
लिख्यतं परोपकाराय || श्री रस्तु ॥
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गुटका संख्या ६६ । पत्र संख्या ११-१२ । शास्त्र भण्डार दि० जैन मन्दिर लूणकरणजी पांडे, जयपुर ।
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