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कविवर बुचराज
काया की निन्दा करहि, पापुन देखहि जोइ ।।
जिङ जिउं भीजइ कावली. तिउ तिज भारी होइ ।। चेयन सुरण ||१०|| चेतन कहता है कि उस जड़ को कौन पानी देगा जिसके न तो फूल है म फल और न पत्त है । उस स्वर्ण का क्या करना है जिसके पहिनने से कान ही कट जायें।
सा जड मूड न सीचिये, जिसु फलु फूलु न पातु ।
सो सोना क्या किये, जोरु कटाव कान ॥ चेयन गुण ।।१०।। पुद्गल इसका बहुत सुन्दर उत्तर देता है कि यौवन, लक्ष्मी, शरीर सुख एवं कुलवंती स्त्री में चारों पुण्य जिसे शप्त हैं वे तो देवतानों के इन्द्र ही है।
संवादात्मक रूप में कवि कहता है कि जिन्होंने उद्यम, साहस, धीरता, बल, बुद्धि और पराक्रम इन छ: बातों की और मन को सुबह कर लिया उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया है।
उद्दिमु साहसु धीरु बलु, बुद्धि पराकमु जारिस । ए छह जिनि मनि दिनु किया, ते पहुवा निरवाणि ]
चेयन सुरण ।।१३।। प्रस्तुत कृति में १३२ से १३६ तक के ५ पद्य प्रष्ट पद्य छप्पय छन्द के हैं। इन में दो पद्यों में जड़ का प्रस्ताब है तथा तीन में चेतन का उत्तर है। अन्तिम पद्य चेतन द्वारा कहलवाया गया है जिसमें जह से प्रतीति नहीं कहने का उपदेश दिया गया है--
जिय मुकति सरूपी तू निकलमलु राया। इसु जड़ के संग ते भमिया कमि भमाया । बडि कबल जिया गुरिण तजि कदम संसारो । भजि जिण गुण हीयई तेरा यहु विवहारो। विवहारु यहु तुझ जारिण जीयचे करहु इंदिय' संवरो । निरजरह बंधण करम्म केरे जानत निढुका अरो। जे वचन श्री जिए थीरि भासे ताह नित धारह हीया ।
इस भणह बूचा सदा निम्मनु मुकति सरूपी जीया ॥१३६ ।। इस प्रकार घेतन पुद्गल धमाल हिन्दी जगत का प्रथम संवादात्मक रोचक काव्य है जिसमें चेतन एवं जड़ में परस्पर गहरा फिन्तु मैत्री पूर्ण वाद विवाद होता है । इसमें चेतन वादी है और पुद्गल प्रतिवादी है। 'चेयन सुरग' यह पुद्गल कहता है तथा 'चेयन गुरण' यह चेतन द्वारा कहा जाता है। पूरा काध्य सुभाषितों