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कविवर बूचराज
लेकिन प्रस्तुत पुस्तक में दिया जाने वाला पाठ प्रथम, चतुर्थ एवं पंचम पाण्डुलिपियों के माधार पर तैयार किया गया है । आमेर शास्त्र भण्डार वाली प्रति जीर्ण अवस्था में है । लेकिन उसके पाठ सबसे अधिक शुद्ध है। बंदी वाली पाण्डुलिपि में ५२।। पद्य एक लिपिकर्ता द्वारा तथा शेष पद्य दूसरे लिपिकार द्वारा लिखे हुए हैं। इसको पारा बाई द्वारा लिखवाया गया था। लिखने वाले देवपाल माली मलविरे का था। यहां क प्रति भामेर शास्त्र भण्डार वाली पाण्डुलिपि है। ख प्रति बूदी के शास्त्र भण्डार की है। तया ग प्रति से तात्पर्य शास्त्र भण्डार दि. जैन मन्दिर बड़ा तेरहपथी मन्दिर जयपुर से है ।