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छील
१२३ इसके बारे में उन्होंने स्वयं ने कोई परिचय नहीं दिया है । लेकिन पञ्च सहेली गीत में कवि ने जिस प्रकार कुए पर पानी भरने के लिए माने वाली पांच विरहिणी स्त्रियों का चित्र प्रस्तुत किया है । उनके परस्पर की वार्तालाप को काध्यबद्ध किया है । उससे ऐसा लगता है कि कवि शोखावाटी प्रदेश के किसी भाग के थे जो ढूढाइ प्रदेश की सीमा को भी छूता था । बावनी में दिये गए परिचय के अनुसार वे अग्रवाल
धे सपा दियाद जेनसाय में उसामा द्वारा थे। कवि ने 'लघुलि' में जिस प्रकार जिन धर्म की महत्ता का वर्णन किया है उससे स्पष्ट है कि ये दिगम्बर अनुयायी श्रामक थे। डा० शिवप्रसाद सिंह ने लिखा है कि कवि के जैन होने का कहीं उल्लेख नहीं मिलता। इससे प्रतीत होता है कि उन्होंने कवि का लघु गीत नहीं देखा । पंथी गीत का भाव नहीं समझा । पिता का नाम नाथू जी नल्हिग वंश के थे। इससे अधिक परिचय अभी तक नहीं मिल सका है। खोज जारी है मौर हो सकता है किसी अन्य सामग्री के उपलब्ध होने पर कवि के सम्बन्ध में पूरा परिचय ही प्राप्त हो जाये ।
सखीहल रसिक कवि थे। जब उन्होंने पञ्च सहेली गीत की रचना की थी लो लगता है वे युवावस्था में थे। और किसी के विरह में उबे हुए थे । कघि पानी भरमे के लिए कुए पर जाते होंगे प्रोर उन्होंने वहां जो कुछ सुना अथवा देखा उसे छन्दोबद्ध कर दिया। मालिन, छीपन, सोनारिन, तम्बोलिन, मादि जाति की युवतियां वहाँ पानी भरने आती होंगी। जब उसने उनसे अपने अपने विरह की याप्त मुनायी तो कवि ने उसे छन्दोबस कर दिया। कवि की अब तक ७ रचनाएं उपलब्ध हो चुकी हैं । यद्यपि बावनी को छोड़कर सभी लघु रचनाएं हैं। किन्तु छोटी होने पर भी ये काव्यमय हैं तथा कवि की काव्य-शक्ति को प्रस्तुत करने वाली हैं । सात रचनाओं के नाम मिम्न प्रकार हैं
१. पञ्च सहेली गीत २. बावनी ३. पंथी गीत ४. लघु वेली ५. आत्म प्रतिबोध जयमाल
१. श्री जिनवर की सेवा कीधी रे मन मूरन आपणा ||१|| २. पूर पूर्व ब्रज भाषा और उसका साहित्य-पृ० १६८ । ३. माल्हिग वंसि नाथू सुतनु अगरवास कुल प्रगट रवि ।
बावनी घसुषा विस्तरी कवि कंकण मोहल कमि ॥५३।।