________________
छोहल
१६ - माताब्दी के अन्तिम चरण के जैन कवियों में छीहल सबसे अधिक चचित कवि रहे हैं। रापचन्द्र शुक्ल के हिन्दी साहित्य के इतिहास से लेकर सभी इतिहासकारों ने किसी न किसी रूप छोहल का नामोल्लेख अवश्य किया है । छोहल राजस्थानी कवि होने के कारण राजस्थानी विद्वानों ने भी अपने अपने इतिहास में उनकी रचनाओं का परिचय दिया है ।
सर्वप्रथम रामचन्द्र शुक्ल ने छीहल का उल्लेख करते हुए लिखा है कि "ये राजपुताने के प्रोर के थे । संवत् १५७५ में उन्होंने पञ्च सहेली नाम की एक छोटी सी पुस्तक दोहों में राजस्यानो मिली भाषा में बनाई जो कविता की दृष्टि से अच्छी नहीं कही जा सकती । इसमें पांच सखियों को विरह वेदमा का वर्णन है । इनकी लिखी बावनी भी है जिसमें ५२ दोहे हैं। उदाहरण के रूप में उन्होंने पञ्च सहेली के प्रथम दो एवं अन्तिम एक पद्म भो उद्शत किया है ।। डा. रामकुमार वर्मा ने अपने "हिन्दी साहित्य का पालोचनात्मक इतिहास" में कवि की पञ्च सहेली गीत के परिचय के साथ ही उनके सम्बन्ध में प्रपना अभिमस लिखा है कि "इनका कविता काल संवत् १५७५ माना जाता है। इनको पञ्च सहेसी नामक रचना प्रसिद्ध है। भाषा पर राजस्थानी प्रभाव यथेष्ट है क्योंकि ते स्वयं राजपुताने के निवासी थे । रचना में वियोग शृगार का वर्णन ही प्रधान है।
मिश्रबन्धु विनोद में वीइल का वर्णन रामचन्द्र शुक्ल एवं रामकुमार वर्मा के परिचय के आधार पर किया गया है। क्योंकि उद्धरण भी शुक्ल वाला ही दिया गया है। में लिखते हैं कि इन्होंने संवत् १५७५ में पञ्च सहेली नामक पुस्तक बनाई जिसमें पांच अबलाओं की विरह वेदना का वर्णन है और फिर उनके संयोग का भी कथन है। इनकी भाषा राजपुताने ढरे की है और इनकी कविता में
--
-
--
१. हिन्दी साहित्य का इतिहास-पृष्ठ १९८ । २. रामकुमार वर्मा-हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास पृष्ठ ५४४ ।