________________
चेतन पुद्गल धमाल
प्रस्तुत धमाल की पाण्डुलिपि दि जैन मन्दिर नागदी, वदी के उसी गुट के में है जिसमें बूचराज के अन्य पाठों का संग्रह है। यह धमाल पत्र संख्या २२ से ४४ तक है । इसके लिपिकर्ता पांडे देववासु हैं। लिपि सुन्दर एवं शुद्ध है। धमाल की पाण्डुलिपियां कामां एवं अजमेर के भट्टारकीय भण्डार में भी है लेकिन वे उपलब्ध नहीं हो सकी इसलिए बूदी वाली प्रति के आधार पर ही महां पाठ दिया जा
रागु वीपा मंगलाचरण
जिनि दीपगु घटि न्यानु करि, रज दीट्टी दश चारि । कवि 'मन्ह पति' सुस्वामि के, रणबउ चलण सिरु धारि ॥१॥ दीपगु इकु सरवनि जगि, जिनि दीपा संसारि । जासु उदह सा भागिया, मिथ्या तिमय अध्यारु ।।२।। 'जिण सासण महि दीवडा, वह पया नवकार । मासु पसाए तुम्हि तिरहसागर यहु संसारु ॥३।। भविया 'अरहंतु दीवडा, के दीपगु सिन्तु । के दीपगु निरग्रंथ' गुरु, जिस गुणि लहिउ न अंतु ||४|| जैन धम्मु जिनि उद्धरघा, जुगला धम्मु निवारि । सो रिसहेता पदिय इ, तारं भव संसारि ॥५॥ धेयन गुणवंत जडस्यो, संगु न कीजे । जड़ गलइरु पूरइ, तिव तिव वूख सहीज ॥६॥ . जा संगु दुहेला, विस भमिया संसारी । जिनि ममता छोटी, लिन पाया भवपार ॥७॥