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चराज के गीत
रागुदीपु
न जाणो तिसु बेल को ने चेतनु रह्या लुभाई वे लाल । चित हमारी राजे परहरी मे सुद्ध तरि निवलाह वे लाल || अंतरि लिवलागी प्रारति भागी जाण्या थुलु निराला | लोका अवलोक सभे जिनि दीपे हूवा सहजि उजाला || निरमलु रसु पीवे जुग जुग जीवे जोतिहि जोति समाइये । न जाण्यो लिए गेल को वेतन के लाल ४१||
जिथी रूपन गंधरसो पयासु तिथि जाइ दे लाल । सरगुण विधानि गुण सिवावे किती हेति सभाइ बे लाल || किती सज्झाए चित्ति चाए आपनई सुखि थीए । रंग महि नित छे कहि न गछइ अमिय महारस पीए || जग जाइ सो उह सभु जो उनमनि रच्यो मनु लाइवे । जिथी रूपुन गंधर सोवे पया मुतिथी तु जावे लाल ||२||
घालता की वालहीये हो रती ते नालि वे लाल । दुख सुख किसी भोगवे वे संगि प्रनादी कालि दे लाल || संगि नादी काले विषी वाले जोवन देंगे वारे । जे जे सुखभाणे भाषी भारणे ते वचित्ति चितारे ॥ हम साथि विरच्या अवरे रच्या साकि न वाचा पालिये । वालत्तण की बालही वे हो रत्ती त नालि वे लाल ||३|
जोया सोई सोहु बावे क्या अखाते नालिये लाल । पाली दरि जे बस रोवे जिवसर प्रदरि पालिने लाल || सर मंदरि पाले देख्नु निहाले प्रागमि ध्यातमि कहिया । जो परम निरंज सब दुख मंजस्यु हष जोगी सरि लहिया ॥ जंपति 'बूचा' गरु तरियं सागर सी बुद्धि संभालिवै । जोया सोई सौ हुवावे क्या खा नालि बे लाल || ४ ||
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