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कविवर बूचराज
पार्श्वनाथ गीत
जाग सलोनडी ए सुण एक बाता। पाव पिणेद सिवां एह मन राता।। राता यहु मन चरण जिणवर वामादेवी नंदनो। एक मुकगनाथ तो, पु' का हर गावस । जिन कमठ बल तप तेज हारमो, मन धर्मासि धरवणीए । कवि बल्ह परस जिवंद बंदौ, जाम रयण सलौनीए ॥१॥ कुकम चंदन सबल करोग, नसर माल मले कुसम ठवीजे । कूसम ठचीजे हार गुथित, म्हाण पूज करावइए । एक जगत गुरु जगनाथ बंदी, पुण्य का फल पाए । चिन अष्ट कर्म विदार क्षय करि, मन धरघाति घरवणीए । कवि बल्ह परस जितेंद्र वंदो, सबलि चंदन कीजिए ॥२॥ त्रिभुवणं तारण मुक्त नरेसो, सप्त फणतो णिकरे रहीया सेसी। रहीया सेसो सात फरिण, अंत किंवही न पाइया । ध्यारिणबइ कोडी झिरद, निझकरि पुरुष डिळ चित लाइया । घरि पुत्त संपद लेह लक्ष्मी, दुरति निकंदना । कवि बल्ह परस जिणंद बंदह, स्याम त्रिभुवन चंदना ||३|| जन्म वनारसे उसपते जासो, अलिवर विषम गढोलिय निबासो। लिया निवास थान प्रसकर, संघ प्रावह बहु पुरे । एक अंग मंडित कनक कुडल, श्रवन मुख होरे जल्छे । दह पंच सहस बद तरेसठ, माघ सुदि तिथि वारसी । कवि वल्ह परस जिणेंद वंदो जन्म लिया बनारसी ॥४॥ ॥ इति पार्श्वनाथ गीत समाप्तो ।
000 १. प्रस्तुत पार्श्वनाथ गीत अभी एक गुटके में उपलग्ध हुमा है। गुटका आमेर .. शास्त्र भण्डार में २६२ संख्या वाला है। इसमें पाश्यनाथ की स्तुति की गयी
है। यह गीत संवत् १५६३ माघ सुदी १२ को लिखा गया था। कवि की अब तक उपलब्ध कृतियो में यह प्राचीनतम कृति है ।