________________
कविवर बुचराज
पंच परमेष्ठी सा समणउ हिंसइ तिजज समिकितु घरड | खिणास्त्रिण चितावs चेत चेतन राज द्वारह भल्लरी । लेकिन जब कवि ने पंजाब की ओर प्रस्थान किया तथा वहां कुछ समय रहने का अवसर मिला तो अपनी कृतियों को पंजाबी शैली में लिखने में वे पीछे नहीं रहे। इनके कुछ गीतों में पंजाबी पन देखा जा सकता है। शब्दों के श्रागेवे, बा, वो लगा कर उन्होंने अपने लघु गीतों में इनका प्रयोग किया है। ए सखी मेरा मसु चपलुदर्स दिसे ध्यानं वेहा' इस पंक्ति में कवि ने 'वेहा' शब्द जोड़कर पंजाबीनने का उदाहरण प्रस्तुत किया है ।
४२
इस प्रकार बुबराज यद्यपि शुद्धतः राजस्थानी कवि है । उसके काव्यों की भाषा राजस्थानी है लेकिन फिर भी किसी कृति पर अपभ्रंश का प्रभाव है तो कोई पंजाबी शैली से प्रभावित है । किसी-किसी पद एवं गीत की भाषा भी दुरुह हो गयी है और उसमें सहजपना नहीं रहा है तथा वह सामान्य पाठक की समझ के बाहर हो गयी है ।
अन्व
कविवर वृचराज ने अपनी कृतियों में अनेक छन्दों का प्रयोग करके अपने छन्द-शास्त्र के गम्भीर ज्ञान को प्रस्तुत किया है। मयराजुज्भ में १५ प्रकार के बन्दों का तथा सन्तोष जयतिलकु में ११ प्रकार के छन्दों का प्रयोग किया है। केवल एकमात्र चेतन पुद्गल धमाल ही ऐसी कृति है जो केवल दीपक छन्द एवं छप्पय छन्द में ही निबद्ध की गयी है। इसके प्रतिरिक्त बारहमासा राग वडहं में तथा अन्य गीत राग धन्याश्री, गौडी, सुड्ड, विहागडा एवं श्रसावरी में निबद्ध किये गये हैं बुबराज को दोहा, मंडिल्ल, रड़ एवं षटुप छन्द प्रत्यधिक प्रिय हैं। वह दोहा को कभी दोहडा नाम देता है । कवि ने रासा छन्द के नाम से छन्द लिखा है जिसमें चार चरण है । तथा प्रत्येक चरण में १५ व १६ अक्षर हैं । मयणजुज्झ में ऐसे ८ से ६२ तक के ४ हैं । अपभ्रंश के पढडिया छन्द का भी कवि ने प्रयोग किया है। लेकिन इसमें केवल ४ चरण हैं तथा प्रत्येक चरण में ११ प्रक्षर हैं ।
१.
करिवि पलाएउ मोह भङ चल्लियज । संमुह सज बाल वधूल भुलियत । फुट्टिय जलहरु कुंभ घाह तदरिण बिय । ले भाइ तह अग्गि धूषंतिय रंडतिय ॥ ६६ ॥
तमकाय तिनि भङ मोह, जाइ पुजु माया तह बुलाई || जब बैठे इन एक सत्य, कलिकालु कहर जब जोडि मृत्यु ||