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कविवर बूच राज
६. दंडासा गीत
कविधर बूचराज ने एक और रूपक काव्य लिखे हैं , संवादात्मक काव्य लिखे हैं, तो दूसरी और छोटे छोटे गीत भी निबद्ध किये हैं। उन्होंने सदैव जनरुचि का ध्यान रखा और अपने पाठकों को अधिक से अधिक प्राध्यात्मिक खुराक देने का प्रयास किया है। टंडाणा गीत उसी धारा का एक गीत है जिसमें कवि ने संसार के स्वरूप का चित्रण किया है । गीत का टंडारणा माब्द टांडे का वाचक है। अनजारे बैलों के समूह पर बस्तुओं को लाद कर ले जाते हैं उसे टांडा कहा जाता है । साथ ही में संसार के दुःखों से कैसे मुक्ति मिले' यह भी बताने का प्रयास किया है।
कवि ने गीत प्रारम्भ करते हुए लिखा है कि यह संसार ही टंडारणा है जो दुःखों का भण्डार है लेकिन पता नहीं यह जीव उसके किस गुण पर लुब्ध हो रहा है । यह जगत् उसे प्रतादि काल से ठग रहा है। फिर भी वह उस पर विश्वास करता है । इसलिए वह कुमार्ग में पड़कर मिथ्यात्व का सेवन करता रहता है और जिनराज को मामा के अनुसार नहीं चलता है। दूसरे जीवों को सता कर पाप कमाता है और उसका फल तो नरक गति का बन्ध ही तो है।
गीत में कवि ने इस मानव को यह भी चेतावनी दी है कि उसने न तों का पालन किया है और न कोई संयम धारण किया है। यही नहीं वह न काम पर भी विजय प्राप्त करने में सफल हो सका है। मानव का कुटुम्ब तो उस वृक्ष के समान है जिस पर रात्रि को पक्षी प्राकर बैठ जाते हैं और प्रातःकाल होते ही उड़ कर पले जाते हैं । यह मानद नर के समान अपने कितने ही नाम रख लेता है ।
___ कवि मागे कहता है कि यह मानव कोच, मान, माया और लोम के वशीभूत होकर जगत में यों ही भ्रमण करता रहता है। जब वृद्धावस्था पाती है तो सब साथी यहां तक कि जवानी भी साथ छोड़ कर चली जाती है। कवि ने अन्त में यही कामना की है कि तू जब अन्तरष्टि होकर प्रात्मध्यान करेगा तब सहज सुख की प्राप्ति होगी।
सुद्ध सरूप सहज लिय नितिदिन झावह अन्तर झाणावें ।
__ जंपति बूचा जिम तुम पादहु वंछित सुख निरवाणावै । इस गीत में कवि ने अपने नामोल्लेख के अतिरिक्त रचना काल एवं रचना स्थान नहीं दिया है। ७. भुवन कोति गीत
चराज को भुवनकीर्ति गीत एक ऐतिहासिक कृति है । इसमें भट्टारक