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कविवर बूवराज एवं उनके समकालीन कवि
करने में उसने जरा भी नकोच नहीं किया है। कवि ने पार सुख गिनाये है पौर ये हैं यौवन, लक्ष्मी, स्वस्थ्य शरीर एवं शीलवती नारी। जहाँ ये चारों हैं वहीं स्वर्ग है । लेकिन सांसारिक सुख तो नश्वर है जो दिन दिन घटते रहते हैं प्रधः संयम ग्रहण ही मोक्ष का एक मात्र उपाय है।
बुचराज ने केवल आध्यात्मिक तथा उपदेशात्मक काव्य ही नहीं लिये किन्तु 'बारहमासा' 'नेमिनास बसन्त' जैसी रचनाएँ लिखकर अपनी ऋगार प्रियता का भी परिचय दिया है । यद्यपि इन काव्यों के लिखने का उद्देश्य भी वैराग्यात्मक है किन्तु इनके माध्यम से षब् ऋतुओं की प्राकृतिक छटा का तथा राजुल की विरहात्मक दशा का वर्णन स्वतः ही हो गया है और इससे काव्यों के विषयों में कुछ परिवर्तन पा गया है । राजुल नेमिनाथ के थाने की प्रतीक्षा करती है। सावन मास से लेकर भाषाढ़ मास तक १२ महिने एक एक करके निकल जाते हैं। राजुल का विरह बढ़ता रहता है तथा उसे किसी भी महिने में नेमिनाथ के प्रभाव में शान्ति नहीं मिलती है । वह अपनी विरह वेदना सहती-सहती थक जाती है। नेमिनाथ प्राने वैराग्य में डूने रहते हैं उन्हें राजुल की चिन्ता कहाँ । यदि चिन्ता होती तो तोरण द्वार से ही श्यों लौटते । घरवार छोड़कर दीक्षा नहीं लेते। लेकिन राजुल को ऐसी बात कैसे समझ में आती । उसने यौवन में प्रवेश लिया था विवाह के पूर्व कितने ही स्वारगम स्वप्न लिये थे । इसलिए उनको वह टूटता हुआ कैसे देख सकती थी। बारहमासा में इसी सब का तो वर्णन किया हुआ है। सावन में बिजली चमकती है, मोर मेघ से पानी बरसाने को रट लगाते हैं, भाद्रपद में चारों मोर जल भर जाता है और माने जाने का मार्ग भी नष्ट हो जाता है, इसी तरह आसोज में निर्मल जल में कमल खिल उठते हैं ऐसे समय में राजुल को अकेलापन खाने को दौड़ता है, उसकी प्रांखों से प्रासुनों की धारा रुकती नहीं । इसी प्रकार राजुल नेमि के विरह में बारह महिने के एक एक दिन गिनकर निकालती है उनकी प्रतीक्षा करती रहती है। लेकिन उसका रीमा, प्रतीक्षा करना, प्राहे भरना, सभी व्यर्थ जाते हैं। क्योंकि नेमिनाथ फिर भी नहीं लौटते और न कुछ संदेशा ही भेजते हैं। कवि ने इस प्रकार इन रचनामों में पात्रों के प्रात्म भावों को उडेल कर ही रख दिया है।
कवि ने उक्त रचनामों के अतिरिक्त पदों के रूप में छोटे-छोटे गीत भी लिम्बे हैं जो विभिन्न रागों में निबद्ध है। सभी पदों में प्रहंत भगवान की भक्ति के लिए पाठकों को प्रेरणा दी गई है साथ ही में वस्तु तस्व का भी वर्णन किया गया है।
१. काया की निवा करई मापुभ देखई जोई।
जि जिउ' भीजइ कविली तिज तिउ भारी होई ॥४॥