Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 04 Gujarati
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Shanti Jin Aradhak Mandal
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भगवान
प्रेमरूप है ।
उहे बापू सूरि-४
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51. सुह-१० ६-११-२०००, सोमवार
પંચખંડ પીઠના અધિપતિ પ્રખર હિન્દુત્વવાદી
સંત ‘આચાર્ય' શ્રી ધર્મેન્દ્રજી ( श्रमशोनी साथै वार्तालाप ३पे. )
मुझे बड़ी प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है इस पावन तीर्थ में श्रमणों के समुदाय के बीच स्वयं को उपस्थित पा कर 1 गच्छाधिपति आचार्यश्री संपूर्ण समाज के सूर्य है । उनके सामने मैं भिक्षुक के रूपमें उपस्थित हूं ।
दादा के दरबार में भिक्षुक बन कर बैठना ही उचित है । चन्द्र जैसे पू. कलापूर्णसूरिजी एवं सूर्य जैसे पू. सूर्योदयसागरसूरिजी दोनों एक साथ बिराजमान है । उनकी कृपा ही हमारा बल है ।
याचना ले कर उपस्थित हुआ
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