Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 04 Gujarati
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Shanti Jin Aradhak Mandal
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यह फूट ही है।
१८ आचार्य यहां एक साथ देखकर आश्चर्य चकित हुआ
विराटनगर (जयपुर के पास) में (जहाँ औरंगझेब ने मंदिर तोड़ा था) दिगंबर श्वेतांबर जैनो में बड़ी फूट मैं देख रहा था । मैं तीन निर्जल उपवास करके उसके विरोध में बैठ गया । जहाँ देवराणी-जेठानी है, वहाँ भरत-राम जैसे संबंध नहीं देखने मिलेगा। वस्त्र में जू पड़ी है तो वस्त्र को हम फेंक नहीं सकते । अगर हिन्दुओं मे फूट है तो हम उनका त्याग नहीं कर सकते । यह हमारा आपसी पारिवारिक सवाल है ।
सब से प्रथम यह शब्द ही गलत है : 'हम हिन्दुओं के साथ रहना चाहते है । अलग हो वही साथ रह सकता है । लेकिन यहां अलग कौन है ? यह पूरा महाद्वीप भगवान ऋषभदेव का ही परिवार है।
हम हिन्दुओं में भी कितने नये-नये पंथ निकल रहे
आनंद मार्ग, बालयोगी, जय गुरुदेव, ब्रह्माकुमारी आदि इसके नमूने हैं ।
युनो में जाने का मैंने विरोध किया था । वहां पूरा रिंग - मास्टर वे ही है । लेकिन बाद में जानेवाले भी पछताये । हिन्दु नहीं, इन्डियन डेलीगेशन था । साथ में मुस्लीम आदि सब गये थे ।
. एक बार भी सती ने अगर लुच्चे के साथ समझौता कर दिया तो वह सती नहीं रहेगी । हम को आकर्षण से मुक्त होना होगा ।
. सुशील मुनि को जैन धर्म के प्रचारक तो मानो । उनका विदेश में जाने से अहिंसा आदि का तो प्रचार होगा । युनो में जानेवाला तो उनका नालायक शिष्य था ।
• आप अगर विदेश में नहीं जाना चाहते है तो हम जा कर आदिनाथ भगवान की प्रतिष्ठा करा दें। सिर्फ पालिताणा में आदिनाथ को सीमित रखना है क्या ?
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