Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 04 Gujarati
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Shanti Jin Aradhak Mandal
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मिश्रण न हो । कुंभ मेले जैसे प्रसंग में ऐसी बात की जा सकती है।
वहां जैन संत न पहुंचे तो प्रतिनिधि भेजे । अयोध्या में दिगंबराचार्य देशभूषण आदिनाथ भगवान की बड़ी प्रतिमा की प्रतिष्ठा करा रहे थे । उस प्रतिमा को ले जाने के लिए गलीओं में सब हिंदुओंने साथ दिया था । केसरीयाजी बड़ा तीर्थ है । ब्राह्मणों ने सिद्ध किया : यह हम सब को जोड़ता है।
जहां विसंगतियां हो वहां तोप के मुंह पर बैठने के लिए मैं तैयार हूं।
प्राणलालजी : अभी शंकराचार्यजी ने बद्रिनाथ में हमारे जैन मंदिर में प्रतिष्ठा को रोकने के लिए कितने रोड़े डाले ?
धर्मेन्द्रजी : शंकराचार्यजी कौन है ? आज कई नकली शंकराचार्य हो गये है। गली-गली में दो - दो शंकराचार्य घूम रहे है । कोई भी शंकराचार्य के ठेकेदार बन सकता है ।
इसका अर्थ यह नहीं कि हम परिवार से अलग हो जायें। यह हमारी पारिवारिक समस्या है । वह आपस में बैठकर सुलझानी होगी।
हमारे हिन्दुओं में सभी एक मत नहीं है । आप के जैनोंमें भी परस्पर संमति कहां है ?
एक करोड़ जैन अगर अलग हो गये तो बौद्धिक धारा अलग हो गई । जैनों के पास बुद्धि की शक्ति है । शीखों के पास बल है । शीख अलग होने से बल अलग हो गया । फिर हिन्दु के रूप में कौन रहेगा ? सिर्फ मछुआरे ही बचेंगे ।
. यद्यपि गांधी का मैं भयंकर विरोधी हूं । जिन्होंने किसानों को मुर्गी - पालन के लिए, मद्रासवासीओं को मछलियां खाने की सलाह दी थी, रुग्ण बछड़ों को बन्दूक से मरवाया था । फिर भी विदेशीओं के समक्ष मेरा सवाल है : तुमने गांधी, इन्दिरा, J.P., बाबा आम्टे आदि को क्यों नोबल नहीं दिया ? मधर टेरेसा को क्यों दिया ? आखिर वह तुम्हारी थी इसलिए ?
किसी विदेशी को तुम पोप बना सकते हो क्या ? केरल के लोग अगर काले है तो कश्मीर के गोरे लोगों को तो पोप २७० * * * * * * * * * * * * * sहे, असापूसूरि-४