Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 04 Gujarati
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Shanti Jin Aradhak Mandal
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जाय वह खग । मिट्टि में जाय वह मृग । बहती रहे वह गंगा । हिंसा से दूर रहे वह हिन्दु है ।।
हमारी सिन्धु नदी कौन ले गया ? सिन्धु नदी भारत की थी ।
यहां से कहां जाओगे ? फिज़ी को समृद्ध बनाने के लिए जिन भारतीयों ने मेहनत की, उनके नेता महेन्द्र चौधरी को ६६ दिन तक वहां के लोगों ने बंदी बना दिया । क्या करोगे तुम ?
नेहरु ने जो किया, विभाजन का कार्य, वह क्या आप श्रावक हो कर करेंगे ?
लघुमती के अंदर भी फिर कितने टूकड़े हो जायेंगे ?
समुद्र - यात्रा यहां-वहां (जैन-अजैन में) निषिद्ध है। एक शंकराचार्य ने की तो उन्हें पद से हटना पड़ा । हमें यहां रहना है, यहीं रहकर हिंसक संस्कृति से लड़ना है।
अगर हम विदेश चले भी गये, डोलर्स कमा भी लिये, लेकिन हमारी संस्कृति का क्या ? मां-बाप वहां कमाने जाते है, और संतान पीने के लिए चले जाते है । यह हिंसक संस्कृति की देन है । हिंसक संस्कृति के सामने हम एक हो कर ही चुनौती दे सकते है।
हमारे भाग्य का निर्णय क्या न्यायालय करेगी ? जिन्हें संस्कृति का ज्ञान नहीं है, वे क्या निर्णय करेंगे ? यह निर्णय तो धर्माचार्यों को करना चाहिए ।
मुस्लीम, ख्रिस्ती, अदालत नहीं चाहते । वे कहेंगे : कुरान ही न्यायालय है । हिन्दु एक पत्नी से सन्तुष्ट है । वे चार पत्नियां रखकर २५ पैदा कर सकते है ।
बद्रिनाथ में अगर आज जैनों का मंदिर नहीं हो रहा है तो क्या लघुमती में जाने से मंदिर हो जायेगा ? क्या हम लघुमती होने से टिके रहेंगे ?
इस सनातन में कोई आगे-पीछे नहीं है।
एक अरब अट्ठानवे करोड़ वर्षों से भी पुराना है हमारा इतिहास । हमें टूटना नहीं चाहिए । अगर हम राजस्थान की ढाणीओं की तरह टूटना चालु रखेंगे तो हमारा टूटना कोई रोक
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