Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 04 Gujarati
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Shanti Jin Aradhak Mandal
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हम अलग हो कर कोई बात समझा नहीं सकते । पू. हेमचन्द्रसागरसूरिजी : पत्रक में आबादी कैसे लिखें? आ. धर्मेन्द्रजी : मुख्य रूप से हिन्दु ही लिखें, ब्रेकेट में जैन इत्यादि लिखें। पत्रक में अगर खाने नहीं हो तो सरकार से लड़ो ।
पू. हेमचन्द्रसागरसूरिजी : धार्मिक लक्ष्य को लेकर हम अलग है, सामाजिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक आदि रूप से हम आपके साथ ही है ।
आचार्य धर्मेन्द्रजी : आज जैन युवक, ख्रिस्ती युवतिओं के साथ शादी कर के आशीर्वाद के लिए हमारे पास आते है । हम आशीर्वाद देते है । दूसरा हम क्या कर सकते है ? क्या बहिष्कार करें ? बहिष्कार नहीं, परिष्कार करना है ।
मैं तो आपका मजदूर हूं । आप जो भी चाहे मेरा उपयोग कर लें ।
पू. धुरंधरविजयजी : हम हिन्दु तो है ही लेकिन जैनेतर हिन्दु हम को 'हिन्दु' के रूप में स्वीकार करते है क्या ? आ. धर्मेन्द्रजी : पूरा समाज उन्मादग्रस्त है । ज्योति बसु, मुलायम सिंह आदि हिन्दु नहीं है क्यां ? फिर भी ये लोग गोमांस खा रहे है ।
एकात्मा से ही यह भेदभाव दूर हो सकता है ।
हम तो चाहते है : विश्व हिन्दु संमेलन में जैन साधु भी उपस्थित हों । हमने बौद्धों में 'बुद्धं सरणं पवज्जामि ।' का नारा
लगाया था ।
आप जहां बुलायेंगे वहां पर शंकराचार्यों के साथ हम भी आ जायेंगे ।
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पू. हेमचन्द्रसागरसूरिजी : तीन दिन का संमेलन बनाने की जरुर है । जहाँ पर आप, ऋतंभरा, मुरारी बापु आदि सब पधारें । आ. धर्मेन्द्रजी : १७५ में से कम से कम १०० हिन्दु संत पधारेंगे, आप जहां बुलायेंगे । मार्गदर्शक मंडल में सभी हिन्दु इक्कट्ठे हो सकते है ।
एक भी ऐसा तीर्थ नहीं है, जहां हिन्दु जैन तीर्थ का
हे, उसापूर्ण सूरि-४ * *
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