Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 04 Gujarati
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Shanti Jin Aradhak Mandal
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में हम सभी 'भारत' है । इसमें विश्वास करनेवाले ८५ करोड़ है। पांच करोड़ भारत से बहार है। अगर हम अलग होंगे तो केवल वेटिकन का ही भला होगा ।
दो अरब मिलकर भी इसा-मुसा का सामना करना मुश्किल है तो इन हिंसकों के (ईशु व हज़रत महम्मद दोनों मांसाहारी थे) समुदाय के सामने एक करोड़ हो कर आप कैसे एक रह सकेंगे?
__ ऐसा विभाजन अगर चालु रहा तो फिर जैनों में भी श्वेताम्बर, दिगम्बर, तेरापंथी, स्थानकवासी..... दिगम्बर में भी सामैया (जिसमें रजनीश पैदा हुआ) के अंदर भी फूट पड़ती रहेगी । फिर लघुमती इतनी बढती जायेगी के हमारा टिकना मुश्किल रहेगा ।
इस कलियुग में एकता ही ताकत है ।।
धर्म निरपेक्ष सरकार के पापपूर्ण पैसों को प्राप्त करने के लिए आप लघुमती में जायेंगे ? मैं तो ऐसी कल्पना नहीं कर सकता ।
जैन धनाढ्य समाज है। केवल जैन अगर निर्णय करें तो भारत को कर्जे से मुक्त करा सकते है ।
कश्मीर, असम टूट रहे है ।
झारखंड इसाईओं का, छत्तीसगढ आदिवासीओं का बना है। यह सब क्या है ?
आप लघुमती अगर बनेंगे तो गोभक्षक, मंदिरभंजक मुस्लीमों के साथ बैठना पड़ेगा ।
पूज्य हेमचन्द्रसागरसूरिजी : इसी विचार को लेकर हम सभी आचार्यों ने चार वर्ष पूर्व निर्णय किया कि हिन्दुओं के साथ ही रहना है । उस वक्त श्रावकों का विरोध भी था ।
लेकिन चार वर्ष के बाद हम स्वयं अपने आप को असहाय महसुस कर रहे है । राणकपुर, पालिताणा में मूर्तियां टूटी । बद्रिनाथ में हमारे विद्वान मुनिश्री जम्बूविजयजी चितित है। अब क्या करना ? __ आचार्य धर्मेन्द्रजी : हमने पहले ही कहा : हम हिन्दुओंमें
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