Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 04 Gujarati
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Shanti Jin Aradhak Mandal
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त्यागी वृंद मेरे सामने है ।
इन्द्रियों का सुख ही सर्वस्व वे मानते है । भोगपरायणता के रंग में वे हमको भी रंगना चाहते हैं ।
मैं सिर्फ निवेदन करने आया हूं । आज भोगवादी राक्षसी निर्वस्त्र हो कर नाच रही है । निर्लज्जता की यह आंधी है । अगर ऐसा ही रहा तो आनेवाली पेढी हमारी बिरासत से अनजान रहेगी, वंचित रहेगी ।
ई.स. १९८४ से हमने राममंदिर - निर्माण का आंदोलन शुरु किया, १९९२ में वह पराकाष्ठा पर पहुंचा । उसमें सारी जातियां एक हो गई । कृष्ण को ही माननेवाली यादव जातियां भी एक हो गई । जाट, यादव, केवट, गूजर, सब एक हो गये । धर्म जोड़ता है, स्वार्थ तोड़ता है । इस चीज को वेटिकन चर्च समझती है इसलिए ही हमें भड़काती है । सर्व प्रथम शीख, बौद्ध, आर्य समाजी आदि को वे हिन्दु नहीं है - ऐसा समझाते है । 'गर्व से कहो : हम हिन्दु है ।' ऐसा नारा देनेवाले विवेकानंद के अनुयायीओं ने भी सरकारी लघुमती लाभ प्राप्त करने के लिए याचिका दायर की है। कहां फरियाद करें ? पूरा आकाश ही टूटा है।
भगवान रामचन्द्र की परंपरा में नाथों की परंपरा थी । उसमें बालानंदी साधु टिके । उस समय विष्णु मंदिर में कोई दीपक तक जलानेवाला नहीं था । वे इतने कट्टर रामपंथी थे कि विष्णु मंदिर में दिया भी नहीं जलाते थे । ऐसी फूट पंचम काल में पड़ती है। हमारी (हिन्दुओंकी) यह निर्बलता
उस निर्बलता को लेकर वेटिकन हमको ज्यादा निर्बल बनाने में और हमको पूर्णरूप से तोड़ने में लगी है ।
संस्कारों को नष्ट करने का षड्यंत्र चलता है । आज कन्नड़, तमिल आदि कहने लगे है : हम हिन्दु नहीं है । धार्मिक रीति-रिवाज भिन्न होने पर भी हमने कभी इस प्रकार के अलगाव को पुष्ट नहीं किया । __हम धर्मनिष्ठ है, सांप्रदायिक नहीं ।
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