Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 04 Gujarati
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Shanti Jin Aradhak Mandal
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हूं । संस्कृति पर आज कुठाराघात हो रहा है । जैसा संकट आज है, पूर्व काल में कभी नहीं था । आखिर यह कलियुग है न ? कलियुग कहो, या पंचम काल कहो, नाम से कोई फरक नहीं पड़ता ।
हमारे यहां ईश्वर, देश के अनेक नाम है । यहां शब्दों की दरिद्रता नहीं है । इतिहास, गुण, देश के आधार पर नाम हुए है ।
एक हजार वर्ष से निरंतर आक्रमण हो रहा था । फिर भी हमने धर्म आस्था को अक्षुण्ण रखी थी । चाहे कितने भी मंदिर टूटे, लेकिन आस्था टूट जाय तो फिर जोड़ना मुश्किल है। आज हमारी आस्था क्षत-विक्षत हो रही है ।
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इस्लाम भोले थे, केवल आक्रमण की ही भाषा थी उनकी । इसाई बडा चालाक है, नियोजित रूप में वह प्रविष्ट हुआ । इसने मंदिर को नहीं तोड़े, आस्था तोड़ी, इतिहास तोड़े । इस आक्रमण को नहीं समझेंगे तो श्रावक, श्रावक नहीं रहेगा । यह संकट सभी धर्म पर है, हमारे अस्तित्व पर संकट है । शत सहस्र हाथ है । आज वह इसके प्रभाव से न धर्म, न
शत्रु के पास सेटेलाइट है, मर्डोक के रूप मे आया है, संस्कृति, कुछ भी न रहेगा ।
भारत को तोड़ने की पराकाष्ठा आ पहूंची है । हम भारतीय अभी एक अरब है । बौद्धों को गिने तो दो अरब है । पूरे विश्व में हर छट्टा व्यक्ति भारत का होगा । लेकिन शत्रु हम सब को तोड़ना चाहता है । अमेरिका में पांच वर्ष पर गया था, 'रिटायर्ड कम्युनिटी' शब्द देखकर स्तब्ध हो गया : 'रिटायर्ड कम्युनिटी' मतलब बूढे लोगों का समाज ।
जो बूढे हो चुके हैं, उनके लिए सब कुछ है, लेकिन स्नेह नहीं है, वे परिवार से विस्थापित हो चुके है । मैंने उन बूढों को देखा । मुझे तो वे हरते फिरते प्रेत ही लगे । नया पति पाने के लिए पुराने पति के बच्चों को मारनेवाली पत्त्रियां वहां है ।
वहां भोगवादी संस्कृति है, यहां त्यागवादी संस्कृति है ।
* * हैं, इसापूर्णसूरि-४
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