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आधार है और गुण-पर्याय आधेय हैं। द्रव्य के बिना गुण-पर्याय का आश्रय नहीं होगा और गुण-पर्याय के बिना द्रव्य को जाना नहीं जा सकेगा। अतः तीनों परस्पर अभिन्न हैं। इन्हें अलग-अलग नहीं किया जा सकता। द्रव्य-गुण-पर्याय में परस्पर भेद ... द्रव्य-गुण-पर्याय-तीनों परस्पर अभिन्न होते हुए भी कथंचित । भिन्न हैं।
संज्ञा संख्या विशेषाच्च स्वलक्षण विशेषतः।
प्रयोजनादि भेदाच्च तन्नानात्वं न सर्वथा।। संज्ञा, संख्या और लक्षण की दृष्टि से तीनों में परस्पर भेद है। 1. संज्ञाकृत भिन्नतां
तीनों की संज्ञा अर्थात् नाम अलग-अलग हैं। एक का नाम द्रव्य, दूसरे का नाम गुण और तीसरे का नाम पर्याय है। नाम की दृष्टि से तीनों में परस्पर भिन्नता है। यदि अभिन्नता होती तो एक ही नाम से काम चल जाता, पर नामों की भिन्नता से यह स्पष्ट है कि उनमें भेद है। 2. संख्याकृत भिन्नता . संख्या अर्थात् गणना। संख्या की दृष्टि से तीनों में परस्पर · भिन्नता है। द्रव्य छः हैं, सामान्य गुण छः और विशेष गुण सोलह
हैं तथा पर्याय अनन्त हैं। अतः संख्या के आधार पर तीनों परस्पर भिन्न हैं। 3. लक्षणकृत भिन्नता
तीनों के लक्षण अलग-अलग हैं। द्रव्य-गुण और पर्याय के आश्रय को द्रव्य कहते हैं।