________________
83
नौ तत्त्व हेय, ज्ञेय, उपादेय के रूप में
नौ तत्त्वों को हेय, ज्ञेय और उपादेय-इन तीन रूपों में विभक्त किया जा सकता है। हेय से तात्पर्य है-छोड़ने योग्य। ज्ञेय से तात्पर्य है-जानने योग्य और उपादेय से तात्पर्य है-ग्रहण करने योग्य। नौ तत्त्वों में जीव, पुण्य, पाप, बंध और आश्रव तत्त्व हेय हैं क्योंक ये कर्म-बंधन के कारण हैं। संवर, निर्जरा और मोक्ष उपादेय हैं, क्योंकि ये कर्ममुक्ति के उपाय हैं। ज्ञेय नौ ही तत्त्व हैं क्योंकि नौ तत्त्वों को जाने बिना हेय और उपादेय का विवेक भी नहीं किया जा सकता।
नौ तत्त्वों में पहला तत्त्व है जीव और अन्तिम तत्त्व हैमोक्ष। दोनों ही जीव हैं। पहला बद्धजीव है और दूसरा मुक्तजीव है। बंधन से मोक्ष तक पहुंचने के लिए नौ तत्त्वों को विस्तार से जानना आवश्यक है। जिस प्रकार जब कोई रोगी किसी प्रसिद्ध डॉक्टर के पास जाता है तो डॉक्टर सर्वप्रथम यह जानने का प्रयास करता है कि उसका रोग क्या है? रोग का निदान कर लेने के बाद वह रोग के कारणों की खोज करता है? कारण की खोज करने के बाद रोग को दूर करने के उपायों की खोज करता है। रोग अधिक न बढ़े अत: सबसे पहले वह उसे तत्काल रोकने का प्रयास करता है। इसके पश्चात् उस स्थिति का भी आकलन करता है कि रोगमुक्ति के पश्चात् पूर्ण स्वस्थता का स्वरूप क्या होगा? रोग, रोग के कारण, रोगमुक्ति के उपाय तथा रोगमुक्त अवस्था इन चारों तथ्यों को अच्छी तरह से जानकर. ही डॉक्टर रोगी के रोग का इलाज करता है। उसी प्रकार दु:खों से या कर्म-बंधन से मुक्त होने की इच्छा रखने वाले साधक को भी चार तत्त्वों को जानना आवश्यक है। पहला तत्त्व है-दुःख को जानना। दूसरा तत्त्व है-दुःख के कारणों को जानना। तीसरा. तत्त्व है-दुःख से मुक्त होने के उपायों को जानना और चौथा तत्त्व है-दुःखमुक्त अवस्था का अनुभव करना।