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आचार्य उमास्वाति ने पुण्य और पाप को बंध का ही भेद स्वीकार कर तत्त्व सात माने हैं। इन्हें अलग मानने पर तत्त्वों की संख्या नौ हो जाती है। 4. पुण्य तत्त्व
कर्म बंधन दो प्रकार का होता है-शुभ बंधन और अशुभ बंधन। जब शुभ कर्मों का उदय होता है तो उन्हें पुण्य कहा जाता है और जब अशुभ कर्मों का उदय होता है तो उन्हें पाप कहा जाता है। कारण में कार्य का उपचार करने पर जिन-जिन कारणों से शुभ कर्म का बंधन होता है, उन कारणों को भी पुण्य कह दिया जाता .
पुण्य के प्रकार
पुण्य का बंधन नौ कारणों से होता है अतः पुण्य के नौ प्रकार
___1. अन्न पुण्य-संयमी पुरुष को दिये जाने वाले अन्न दान
के निमित्त से होने वाला शुभकर्म अन्न पुण्य है। 2. पान पुण्य-संयमी पुरुष को दिये जाने वाले पानक-जल
आदि के निमित्त से होने वाला शुभकर्म पान पुण्य है। 3. लयन पुण्य-संयमी पुरुष को दिये जाने वाले मकान के
निमित्त से होने वाला शुभकर्म लंयन पुण्य है। . 4. शयन पुण्य-संयमी पुरुष को दिये जाने वाले पाट-बाजोट
आदि के निमित्त से होने वाला शुभकर्म शयन पुण्य है। 5. वस्त्र पुण्य-संयमी पुरुष को दिये जाने वाले वस्त्र के
निमित्त से होने वाला शुभकर्म वस्त्र पुण्य है।
6. मन पुण्य-मन की शुभ प्रवृत्ति से होने वाला शुभकर्म .... .. मन पुण्य है।