________________
145
( प्रवृत्ति) के सम्यक् निग्रह को गुप्ति कहा गया है। जैसे खेत की सुरक्षा के लिए बाड़ तथा नगर की रक्षा के लिए प्राकार और खाई होती है, इसी तरह पापों के निरोध के लिए गुप्तियों का विधान किया गया है। योग की त्रिविधता के कारण गुप्ति के भी तीन भेद कहे गए हैं
1. मनोगुप्ति,
2. वचनगुप्ति,
3. कायगुप्ति ।
1. मनोगुप्ति
मन का सर्वथा निग्रह करना अथवा मन की असंयत प्रवृत्ति का निग्रह करना मनोगुप्ति है। सरंभ, समारंभ और आरंभ में प्रवृत्त हुए मन को रोकना मनोगुप्ति है।
1. सरंभ - किसी को मारने की इच्छा करना सरंभ है।
2. समारंभ - मारने के साधनों पर विचार करना समारंभ है। 3. आरंभ – मारने की क्रिया को प्रारम्भ करने का विचार . करना आरंभ है।
-
इस प्रकार मानसिक सरंभ, समारंभ और आरंभ से मन को हटा लेना मनोगुप्ति है।
2. वचनगुप्ति
वचन का सर्वथा निग्रह करना अथवा वचन की असंयत प्रवृत्ति का निग्रह करना वचनगुप्ति है। सरंभ, समारंभ और आरंभ में प्रवृत्त हुए वचन को रोकना वचनगुप्ति है।
सरंभ - दुष्ट वचन बोलने का विचार करना वाचिक सरंभ है। समारंभ - दुष्ट वचन बोलने की तैयारी करना वाचिक समारंभ है।