Book Title: Jain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Author(s): Rujupragyashreeji MS
Publisher: Jain Vishvabharati Vidyalay

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Page 216
________________ जानने की। उनका मानना है मनुष्य के मस्तिष्क में जो हिंसा के केन्द्र हैं, उनका परिष्कार करने के लिए और अहिंसा के केन्द्र को जागृत करने के लिए प्रशिक्षण और प्रयोग की आवश्यकता है। प्रशिक्षण का संबंध उपदेश से नहीं, आचरण से है। हिंसा मत करो यह उपदेश है किन्तु जीवन - व्यवहार में अहिंसा का होना आचरण है। आचरण के लिए अहिंसा का विधिवत् प्रशिक्षण होना आवश्यक है। आचार्य महाप्रज्ञ ने अहिंसा - प्रशिक्षण के चार आयाम प्रस्तुत किये हैं। अहिंसा - प्रशिक्षण के चार आयाम 207 अहिंसा-प्रशिक्षण के मुख्य चार आयाम हैं 1. हृदय परिवर्तन, 2. दृष्टिकोण परिवर्तन, 3. जीवनशैली परिवर्तन, 4. आजीविकाशुद्धि - प्रशिक्षण । 1. हृदय परिवर्तन - - अहिंसा - प्रशिक्षण का प्रथम आयाम है- -हृदय-परिवर्तन। हृदय का साधारणतया अर्थ हार्ट (Heart ) किया जाता है। यहां हृदय परिवर्तन का अर्थ है- - भाव-परिवर्तन । आयुर्वेद के अनुसार हृदय दो हैं - एक फुफ्फुस के नीचे और दूसरा मस्तिष्क में। हमारे भावों का उद्गम स्थल मस्तिष्क का एक भाग लिम्बिक संस्थान है, अतः हृदय परिवर्तन को मस्तिष्कीय प्रशिक्षण भी कहा जा सकता है। आचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार हृदय परिवर्तन का तात्पर्य निषेधात्मक भावों को समाप्त कर विधायक भावों को जगाने से है। राग-द्वेष, घृणा, ईर्ष्या आदि निषेधात्मक भाव हैं। मैत्री, करुणा, दया, प्रेम आदि विधेयात्मक भाव हैं। निषेधात्मक भाव हिंसा को जन्म देते हैं। सामान्यतया यह समझा जाता है कि आदमी परिस्थितिवश हिंसा

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