Book Title: Jain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Author(s): Rujupragyashreeji MS
Publisher: Jain Vishvabharati Vidyalay

View full book text
Previous | Next

Page 224
________________ 215 भी अपने व्यापार या व्यवसाय में अप्रामाणिकता बरतता है। अणुव्रत ने इस भ्रान्ति को तोड़ने का प्रयास किया और एक नया स्वर दिया कि नैतिक बने बिना व्यक्ति धार्मिक नहीं बन सकता है। अणुव्रत नैतिकता का आन्दोलन है। अणुव्रत के आधार पर नैतिकता का मानदण्ड है- संयम । जहाँ-जहाँ संयम है, वहाँ-वहाँ नैतिकता है। संयम के अभाव में नैतिकता नहीं हो सकती। इसीलिए इसका मूल मंत्र है - 'संयमः खलु जीवनम्' संयम ही जीवन है। संयम के विकास के लिए आवश्यक है - मैत्री का विकास, इच्छाओं का सीमाकरण, भोगोपभोग का संयम, प्रामाणिकता और करुणा का विकास करना । 5. अणुव्रत की आचार-संहिता अणुव्रत : अर्थ एवं परिभाषा शाब्दिक दृष्टि से अणु का अर्थ है 'छोटा' और व्रत का अर्थ है 'नियम' । अणुव्रत छोटे-छोटे नियमों की एक आचार संहिता है। भावात्मक दृष्टि से अणुव्रत का अर्थ है * चरित्र निर्माण की प्रक्रिया । सर्वसम्मत मानव जीवन की आचार-संहिता । सम्प्रदाय - विहीन धर्म का प्रयोग | 'अणुव्रत' में सम्प्रदाय गौण है, धर्म तथा चरित्र मुख्य है। केवल अगले जीवन की चिन्ता गौण है, प्रायोगिक जीवन प्रधान है। साम्प्रदायिक मतवाद का आग्रह गौण है, सब धर्म-सम्प्रदायों के साथ सद्भाव का प्रयत्न मुख्य है। आचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार - अणुव्रत चरित्र विकास के लिए किये जाने वाले छोटे-छोटे संकल्प हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240