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विपरीत अहिंसा का पालन करने वाला सभी प्राणियों को समान दृष्टि से देखता है, मन में किसी के प्रति द्वेषभाव नहीं लाता। मन के दूषित न होने पर उसकी आत्मा भी शुद्ध एवं पवित्र रहती है। आत्मशुद्धि के कारण वह मोक्षमार्ग पर अग्रसर होता है। अहिंसा के पालन से वह जन्म-मरण के बंधन से छूटकर मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। इस प्रकार अहिंसा पालन करने के दो कारण हैं। व्यावहारिक कारण है-अन्य प्राणियों के प्रति उपकार और नैश्चयिक कारण है-आत्मकल्याण या मोक्षप्राप्ति। 2. पशु-पक्षियों के प्रति क्रूरता बनाम आत्मौपम्यता
जैन दर्शन आत्मवादी दर्शन है। उसके अनुसार समस्त प्राणियों की आत्मा समान है। चाहे वह मनुष्य की आत्मा हो या पशु-पक्षी की आत्मा हो। जैसे मनुष्य अपने प्रति क्रूर. व्यवहार पसन्द नहीं करता, वैसे ही पशु-पक्षी भी अपने प्रति क्रूर व्यवहारं पसन्द नहीं करते। किन्तु मनुष्य ने आज अपनी भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति के लिए पशु-पक्षियों के साथ क्रूर व्यवहार करना शुरू कर दिया, जिससे पशु-पक्षियों को तो कष्ट होता ही है किन्तु उसका दुष्परिणाम मानव मात्र को भोगना पड़ रहा है। इसलिए यह बहुत आवश्यक हो गया है कि मनुष्य पशु-पक्षियों के साथ भी आत्मतुल्य व्यवहार करे। अनावश्यक उनके साथ क्रूर व्यवहार न करे। आत्मतुला के भाव को विकसित करने के साथ-साथ यह जानना भी आवश्यक है कि किन-किन क्षेत्रो में पशु-पक्षियों के साथ अनावश्यक क्रूर व्यवहार हो रहा है। प्रो. बच्छराज दुगड़ ने 'अहिंसा का व्यवहार' नामक अपनी पुस्तक में मनुष्य द्वारा पशु-पक्षियों के प्रति की जाने वाली क्रूरता के विविध क्षेत्रों को निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से सोदाहरण समझाया है, जो इस प्रकार है
1. पशु-पक्षियों के आवास का क्रूरतापूर्ण विनाश। 2. भोजन, वस्त्र और मनोरंजन हेतु क्रूरता।