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बड़ा झूठ बोलने का त्याग कर सकता है। ऐसा झठ, जिसके बोलने से किसी का बहुत बड़ा नुकसान हो, किसी निर्दोष प्राणी की हत्या हो, ऐसे असत्य संभाषण का त्याग करना सत्य अणुव्रत है। जिस प्रकार श्रावक हिंसा का त्याग तीन योग दो करण से करता है उसी प्रकार असत्य का त्याग भी वह तीन योग और दो करण से करता है।
___ दसवैकालिक सूत्र में बताया गया है कि व्यक्ति क्रोध, लोभ, भय या हास्यवश असत्य भाषण करता है। अतः श्रावक के लिए कहा गया कि उसे अपने इन भावों पर नियंत्रण रखना चाहिए। 3. अचौर्य अणुव्रत
श्रावक का तीसरा व्रत अचौर्य अणुव्रत है। इसमें वह स्थूल चोरी से तीन योग और दो करण से विरत होता है। स्थूल चोरी का त्याग करने पर उसका जीवन लोक-व्यवहार की दृष्टि से विश्वसनीय और प्रामाणिक बन जाता है।
श्रावक पूर्ण रूप से चोरी को नहीं छोड़ सकता किन्तु डाका डालकर, ताला तोड़कर, लूट-खसोटकर, बड़ी चोरी का त्याग करना अचौर्य अणुव्रत है। जिस चोरी से राजदण्ड मिले और लोग निन्दा करें, वैसी चोरी बहुत घृणित मानी जाती है। उसे छोड़ना प्रत्येक श्रावक का ही नहीं, प्रत्येक सभ्य व्यक्ति का कर्तव्य है। 4. ब्रह्मचर्य अणुव्रत (स्वदार-संतोष व्रत)
श्रावक का चौथा व्रत ब्रह्मचर्य अणुव्रत है। इसे स्वदार-संतोष व्रत भी कहा जाता है। श्रावक संन्यासी नहीं होता। अपनी वंश परम्परा को चलाने के लिए. वह विवाह करता है। अपनी पत्नी में ही संतोष करना स्वदारसंतोष व्रत है। दूसरे शब्दों में वेश्यागमन और पर-स्त्री संभोग का त्याग करना तथा अपनी स्त्री के साथ भी संभोग की मर्यादा करना ब्रह्मचर्य अणुव्रत है। इसी प्रकार स्त्री पर-पुरुष के साथ संभोग का त्याग करती है तथा अपने पति के साथ संभोग