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प्रदर्शन की मनोवृत्ति
व्यक्ति ज्ञातिजनों और मित्रजनों के सम्मुख परिग्रह का प्रदर्शन कर आंतरिक प्रसन्नता का अनुभव करता है। प्रदर्शन की भावना से ही प्रेरित होकर वह बंगला, कार, आभूषण आदि का आवश्यकता न होने पर भी संग्रह करता रहता है। परिग्रह का परिणाम
परिग्रह अनेक दोषों की जननी है। परिग्रह के लिए ही व्यक्ति हिंसा करता है, झूठ बोलता है, चोरी करता है, अनेक कष्टों को सहन करता है। अतः परिग्रह का परिणाम व्यक्ति के लिए दुःखदाई होता है। जैसे
धन-धान्य आदि का संग्रह करने के लिए उसे अनेक कष्टों को सहन करना पड़ता है।
* धन प्राप्त हो जाने पर उसकी सुरक्षा का भय सदा बना रहता है।
* बाढ, भूकम्प, चोरी-डकैती आदि किन्हीं कारणों से प्राप्त धन का नाश होने पर तीव्र अनुताप होता है।
परिग्रह का सुख तो सभी बंटा लेते हैं, किन्तु परिग्रह से उत्पन्न दुःख का अनुभव व्यक्ति अकेला करता है। परिग्रह असन्तोष, अविश्वास एवं हिंसा आदि का कारण बनता है। इसीलिए परिग्रह का . परिणाम दुःख है। परिग्रह-परिमाण व्रत का औचित्य
सामान्यतः यह कहा जाता है कि इच्छाओं का जितना अधिक विकास होगा, उतना ही आर्थिक विकास होगा और जितना आर्थिक विकास होगा, उतना ही राष्ट्र का विकास होगा अतः इच्छाओं को असीम बनाना चाहिए। अर्थ विकास के इस युग में