________________
175
अंतरंग परिग्रह
___ अंतरंग परिग्रह के चौदह भेद हैं- मिथ्यात्व, क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति, भय, शोक, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद।
श्रावक बाह्य और अंतरंग परिग्रह की मर्यादा करता है। जितनी मर्यादा करता है, फिर उसी के अन्तर्गत अपने जीवन का संचालन करता है।
परिग्रहपरिमाण व्रत की मर्यादाएँ
___ श्रावक पूर्ण रूप से परिग्रह का परित्याग नहीं कर सकता। वह इन नौ प्रकार के बाह्य परिग्रहों में से अपने लिए आवश्यक वस्तुओं की मर्यादा कर शेष वस्तुओं के ग्रहण एवं संग्रह का त्याग करता है। यही इच्छापरिमाण व्रत या परिग्रहपरिमाण व्रत है।
द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव से परिग्रह का परिमाण इस प्रकार किया जाता है; यथा
द्रव्य से-अमुक-अमुक वस्तु के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं की इच्छा नहीं करूंगा।
क्षेत्र से- अमुक-अमुक क्षेत्र से बाहर की वस्तु की इच्छा नहीं करूंगा।
काल से- इतने दिन, मास, वर्ष या जीवन भर इन वस्तुओं के अतिरिक्त उपयोग नहीं करूंगा।
' भाव से-जिन वस्तुओं की मर्यादा की है, उनसे अधिक की इच्छा नहीं करूंगा। . . परिग्रह का कारण
परिग्रह (पदार्थ संग्रह) के मूल कारण हैं- इच्छा, तृष्णा, काम, लोभ और सुखवादी-सुविधावादी मनोवृत्ति।