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11. पौषधोपवास व्रत
तीसरा शिक्षाव्रत पौषधोपवास व्रत है। अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णिमा, अमावस्या तथा अन्य किसी तिथि में उपवास के साथ शारीरिक साज-सज्जा को छोड़कर एक दिन-रात तक सावद्य प्रवृत्ति का त्याग करना पौषधव्रत है। चौविहार उपवास के बिना पौषध व्रत नहीं होता । तिविहार उपवास कर जो चार प्रहर या अधिक समय तक पौषध किया जाता है, वह पौषधव्रत नहीं अपितु देशावकासिक व्रत ही होता है। व्यवहार में उसे पौषध कह दिया जाता है। आठ प्रहर तक जो पौषधं किया जाता है वह प्रतिपूर्ण पौषध कहलाता है। पौषधकाल में श्रावक साधु की तरह हो जाता है। । वह उतने समय के लिए गृहस्थ द्वारा किये जाने वाले सभीसावद्य कार्यों से मुक्त हो जाता है। पौषध में वह मुख्य रूप से आत्म-चिन्तन, आत्म- म-शोधन और आत्म-विकास की दिशा में पुरुषार्थ करता है।
- इस व्रत की आराधना में एक दिन-रात (24 घंटे) के लिए निम्न बातों के त्याग किये जाते हैं
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1. चारों आहार के त्याग ।
2. कामभोग़ के त्याग अर्थात् ब्रह्मचर्य का पालन ।
3. सोने, चांदी, हीरे आदि के बहुमूल्य आभूषणों का त्याग।
4. माला, गंध आदि धारण का त्याग।
5. हिंसक उपकरणों एवं समस्त दोषपूर्ण प्रवृत्तियों का त्याग ।
12. अतिथिसंविभाग व्रत
चौथा शिक्षाव्रत अतिथिसंविभाग व्रत है। अतिथि का अर्थ है - जिसके आने की कोई भी तिथि, दिन या समय निश्चित नहीं है। जो बिना सूचना के अनायास आ जाये, वह अतिथि है। उस अतिथि को अपने लिए तैयार किये गए भोजन आदि पदार्थों में से