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श्रावक की परिभाषा
श्रावक के आचार को समझने से पूर्व श्रावक शब्द का ज्ञान होना आवश्यक है। श्रावक शब्द संस्कृत के 'श्रु' धातु से बना है, जिसका अर्थ है-सुनना। जो श्रमण के उपदेश को श्रद्धापूर्वक सुनकर उसका आचरण करता है, वह श्रावक कहलाता है। श्रावक का आचार
- भगवान महावीर ने श्रावक के लिए बारह व्रतों का विधान किया है। उनमें से पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत कहलाते हैं।
पांच अणुव्रत-1. अहिंसा अणुव्रत, 2. सत्य अणुव्रत, 3. अचौर्य अणुव्रत, 4. ब्रह्मचर्य (स्वदार संतोष) अणुव्रत, 5. अपरिग्रह (इच्छापरिमाण) अणुव्रत। .
तीन गुणवत-1. दिग्व्रत, 2. भोगोपभोग-परिमाण व्रत, 3. अनर्थदण्ड-विरमण व्रत। .. चार शिक्षाव्रत-1. सामायिक व्रत, 2. देशावकासिक व्रत, 3. पौषधोपवास व्रत, 4. अतिथि-संविभाग व्रत। पांच अणुव्रत
बारह व्रतों में प्रथम पांच अणुव्रत हैं। अणुव्रत का अर्थ है-छोटा और व्रत का अर्थ है-नियम। श्रमण हिंसा आदि का पूर्ण रूप से त्याग करते हैं अतः उनके व्रत महाव्रत कहलाते हैं। श्रावक उन व्रतों का पालन आंशिक रूप से करता है अतः उनके व्रत अणुव्रत कहलाते हैं। अणुव्रत पांच हैं। 1. अहिंसा अणुव्रत
श्रावक का प्रथम व्रत अहिंसा अणुव्रत है। इसमें श्रावक स्थूल