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जीवों की भी हिंसा न हो। वस्तु को उठाते और रखते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए यह विवेक आदान-निक्षेप समिति में दिया जाता है। जैसे बिना देखे सहसा किसी वस्तु को नहीं उठाना, अस्थिर या चंचल चित्त से नहीं उठाना। अच्छी तरह देखकर, प्रमार्जित कर, उसके बाद उपयोग में लेना और कार्य पूर्ण होने पर जागरूकतापूर्वक यथास्थान पर रखना आदान -1 न-निक्षेप समिति है।
5. उत्सर्ग समिति
उत्सर्ग का अर्थ है - छोड़ना । आहार के साथ निहार का क्रम भी चलता है। मुनि द्वारा त्यागने योग्य शारीरिक मल, मूत्र, कफ, नाक और शरीर का मैल, अपथ्य आहार आदि अनुपयोगी वस्तुओं का विसर्जन एकान्त तथा जीव-जन्तु से रहित स्थान में करना उत्सर्ग समिति है। अनुपयोगी वस्तुओं का उत्सर्ग कैसे स्थान में किस प्रकार करना चाहिए, यह विवेक उत्सर्ग समिति में दिया जाता है। जैसे - मल-मूत्र आदि का उत्सर्ग ऐसे सार्वजनिक स्थानों पर न करें, जिससे लोकोपवाद हो सकता है। अपथ्य आहार आदि ऐसे स्थान पर न डालें जहां चींटियाँ आने की संभावना हो । अनुपयोगी वस्तु का परिष्ठापन (उत्सर्ग) करने के बाद 'वोसिरामि' (इस वस्तु से मेरा अब कोई प्रयोजन नहीं है) शब्द को तीन बार बोलें। इस प्रकार एकान्त, जीव-जन्तु रहित भूमि पर अनुपयोगी वस्तु का त्याग करना उत्सर्ग समिति है।
गुप्ति
गुप्ति शब्द गोपन से बना है, जिसका अर्थ है - खींच लेना, दूर कर लेना । गुप्ति का अर्थ रक्षा भी है। मन, वचन, काया के साथ जब गुप्ति का योग होता है तो उसका अर्थ है- मन, वचन, काय की अकुशल प्रवृत्तियों से रक्षा तथा कुशल प्रवृत्तियों में संयोजन करना । तत्त्वार्थसूत्र में 'सम्यग्योगनिग्रहो गुप्तिः' कहकर योग