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संयमपूर्वक चलना चाहिए, क्योंकि चलते समय दृष्टि को यदि बहुत दूर रखा जाएगा तो सूक्ष्म जीव दिखाई नहीं देंगे और यदि दृष्टि को अत्यन्त निकट रखा जाएगा तो सहसा पैर के नीचे आने वाले जीवों की हिंसा से भी बचा नहीं जा सकेगा। इसलिए शरीर-परिमाण क्षेत्र (चार हाथ भूमि) देखकर चलने का विधान है। चलते समय बातचीत, अध्ययन, चिन्तन आदि कार्य करने का भी निषेध रखना चाहिए। 2. भाषा समिति । ..
विवेकपूर्ण भाषा का प्रयोग करना भाषा-समिति है। मुनि का काम सर्वथा मौन रखने से नहीं चल सकता। उसे अनेक कारणों से ' अनेक प्रसंगों पर बोलना पड़ता है किन्तु आवश्यकतावश बोलते समय क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, भय, वाचालता और विकथा इन आठ दोषों से रहित हो भाषा का प्रयोग करना चाहिए। मेरे वचनों से किसी को किसी प्रकार की पीड़ा न पहुंचे, इस उद्देश्य से हितकारी वचन बोलना भाषा समिति है। बोलने से पहले और बोलते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, यह विवेक भाषा समिति में दिया जाता है। जैसे-चलते समय नहीं बोलना चाहिए, रात्रि में एक प्रहर के बाद जोर से नहीं बोलना चाहिए, कर्कश और कठोर भाषा नहीं बोलनी चाहिए। हमेशा सत्य वचन, प्रिय वचन और हितकारी वचन बोलना चाहिए। इस प्रकार भाषा समिति सत्य महाव्रत के पालन करने में सहायक होती है। 3. एषणा समिति
आहार या भिक्षाचर्या का विवेक एषणा समिति कहलाता है। एषणा का सामान्य अर्थ-आवश्यकता, चाह, गवेषणा, खोज करना आदि है। जीवन को चलाने के लिए भोजन, पानी, स्थान आदि की आवश्यकता होती है। श्रमण अपनी आवश्यकता की पूर्ति याचना के द्वारा करता है। आहार, पानी, वस्त्र, स्थान आदि की खोज या याचना