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विवेकपूर्वक करना एषणा समिति है। मुनि को निर्दोष आहार, पानी आदि वस्तुओं की खोज करनी चाहिए। उतना ही आहार आदि ग्रहण करना चाहिए, जिससे दाता को कष्ट न हो। जिस प्रकार भ्रमर फूलों को बिना कष्ट पहुंचाए उनसे थोड़ा-थोड़ा रस ग्रहण करता है, उसी प्रकार मुनि दाता को कष्ट न पहुंचे इस बात को ध्यान में रखकर आहार आदि ग्रहण करता है। एषणा के तीन भेद हैं-गवेषणा, ग्रहणैषणा और परिभोगैषणा।
1. गवेषणा-दोषरहित शुद्ध आहार की खोज करना गवेषणा
___ 2. ग्रहणेषणा-दोषरहित शुद्ध आहार उपलब्ध होने पर उसे ग्रहण करते समय जिन-जिन नियमों का पालन करना होता है, वह ग्रहणैषणा है।
3. परिभोगैषणा-उपलब्ध आहार का भोग करते समय जिन-जिन नियमों का पालन करना होता है, वह परिभोगैषणा है।
-- आहार, पानी आदि की एषणा करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, यह विवेक एषणा समिति में दिया जाता है। एषणा के नियमों को समझकर संयमी जीवन के लिए उपयोगी वस्तुओं को ग्रहण करना चाहिए। उनके ग्रहण और उपयोग करने में किसी जीव की हिंसा या विराधना न हो, यह विवेक रखना ही एषणा समिति है। 4. आदान-निक्षेप समिति __आदान का अर्थ है-वस्तु को उठाना, ग्रहण करना तथा निक्षेप का अर्थ है-वस्तु को नीचे रखना। किसी भी वस्तु को ग्रहण करते समय अर्थात् उठाते समय और रखते समय सावधानी रखना आदान-निक्षेप समिति है। किसी भी वस्तु को उठाते या रखते समय स्थान आदि को देखकर इस प्रकार रखना चाहिए कि सूक्ष्म से सूक्ष्म