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उनका शोधन भी करती है उसी तरह समिति-गुप्तिरूप ये अष्ट प्रवचनमाताएँ श्रमण के सम्यक् चारित्र का पालन-पोषण करती हैं और उन्हें उनके लक्ष्य तक पहुंचाने में सहयोगी बनती हैं। इन आठ प्रवचनमाताओं में सारा जिन-प्रवचन समा जाता है, इसलिए भी इन्हें माता कहा गया है। समिति
समिति अर्थात् सम्यक् प्रवृत्ति। श्रमण-जीवन में शरीर धारण के लिए अथवा संयम-निर्वाह के लिए जो क्रियाएँ की जाती हैं, उनको विवेकपूर्वक, सम्यक् प्रकार से करना समिति है। यद्यपि श्रमण धर्म निवृत्ति प्रधान है, फिर भी जीवन-चर्या को चलाने के लिए चलना, बैठना, उठना, बोलना, भोजन करना, उपकरण आदि उठाना और रखना, मल-मूत्र का विसर्जन करना आदि क्रियाएँ करनी पड़ती हैं। इन प्रवृत्तियों को जागरूकता के साथ संयमपूर्वक सम्पन्न करना समिति कहलाता है। समिति के पांच भेद हैं- 1. ईर्या समिति
2. भाषा समिति 3. एषणा समिति 4. आदान-निक्षेप समिति
5. उत्सर्ग समिति 1. ईर्या समिति
__ इसका सामान्य अर्थ है-गमनागमन विषयक जागरूकता। ईर्या का अर्थ है-गमन। गमन विषयक सद्प्रवृत्ति ईर्या समिति है। कैसे चलना? चलते समय किन बातों का ध्यान रखना, यह विवेक ईर्या समिति में दिया जाता है। श्रमण के चलने की क्रिया इस प्रकार की हो कि उसमें यथासंभव किसी भी प्राणी की हिंसा न हो। उसे युग-प्रमाण भूमि (शरीरपरिमाण भूमि) को आंखों से देखते हुए,